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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
सं. २०४९ में मणिनगर (अहमदाबाद), सं. २०५० में नारणपुरा (अहमदाबाद), सं. २०५१ में बडौदा, सं. २०५२ में मांडल, सं. २०५३में शंखेश्वर और सं. २०५४ में बाडमेर (राजस्थान) में आकर हमारी निश्रामें प्रत्येक पर्युषणमें ६४ प्रहरी पौषध के साथ कभी अट्ठाई (८उपवास) तो कभी अठुम, उपवास, एकाशन आदि तपश्चर्या करते हैं।
___ संघ के साथ पालिताना, आबु, शंखेश्वर, भद्रेश्वर, सुथरी आदि अनेक तीर्थोंकी यात्रा करने का लाभ भी उन्होंने लिया है । सं. २०५४में बाडमेरसे सम्मेतशिखरजी आदि तीर्थों की यात्रा का १८ दिनका आयोजन था, उसमें बाडमेर के एक भाग्यशाली सुश्रावकने कांयाभाई आदि १० व्यक्तियों को अपनी ओर से निःशुल्क यात्रा करवाने का लाभ लिया था। कांयाभाई ने अत्यंत अहोभावके साथ तीर्थयात्रा द्वारा अपनी आत्माको लघुकर्मी बनाया ।
कर्मवशात् महेतारज मुनिवर आदिकी तरह अनुसूचित जातिमें उत्पन्न होने पर भी ऐसी आत्माएँ अपने आचरण द्वारा भवांतरमें उत्तम कुलमें उत्पन्न होने की तैयारी करती हैं ।
कांयाभाई के जीवनमें से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन को आराधनामय बनायें - यही मंगल भावना । शंखेश्वरमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें कांयाभाई भी पधारे थे तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 15 के सामने ।
पता : कांयाभाई लाखौभाई माहेश्वरी ओतरा फलिया, मु.पो. बिदड़ा, ता. मांडवी, कच्छ (गुजरात) पिन : ३७०४३५
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"इस दुनियामें मेरे जैसा सुखी कोई नहीं होगा"
पीतांबरदास मोची
__गुजरातमें सुरेन्द्रनगर जिले के लखतर गाँवमें जैन स्थानक के पास बैठकर जूतों को सीने द्वारा आजीविका चलानेवाले पीतांबरदास (उ. व. ५४) बहुरत्ना वसुंधरा - १-4