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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ दी । मगर बेटीने कहा कि, "पिताजी ! पहले आप चाय पी लें, मैं आपके बादमें ही चाय पीऊँगी' । डॉ. खानने प्रत्युत्तर देते हुए कहा 'बेटी ! हाल में रोजा (उपवास) कर रहा हूँ इसलिए मैं चाय नहीं पी सकूँगा, मगर तू खुशी से पी ले । तब पितृभक्त सुपुत्रीने पिताके बिना अकेले चाय पीना पसंद नहीं किया एवं दोनों चाय पिये बिना ही वापिस लौट आये।
दूसरे दिन डो. खानने प्रातः कालमें उपाश्रयमें जाकर पुनः पौषध व्रतका स्वीकार कर लिया । अपनी धर्मपत्नी डॉ. उषाबहन को उन्होंने कह दिया था कि 'दिनके समयमें बेटीको उपाश्रयमें ले आना एवं आचार्य भगवंत से वासक्षेप एवं आशीर्वाद ग्रहण कराना । धर्म के प्रभावसे बची हुई बेटी को धर्मशासन की शरणमें अर्पण कर देना' । पति की ऐसी दृढ धर्मश्रद्धा देखकर धर्मपत्नी का मस्तक भी अहोभाव से झुक गया ।
डो. खान मुख्य रूपसे हड्डियों के रोग निवारण में निपुण हैं । केवल तेल की मसाज से ही वे हड्डियों के दर्द का निवारण कर देते हैं। दर्दी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो ऐसी भावना से वे तेलसे मसाज करते समय भावपूर्वक नवकार महामंत्र का स्मरण करते हैं । उससे दर्दी को शीघ्र स्वास्थ्य प्राप्ति होती है । अगर नवकार स्मरणमें एकाग्रता नहीं सधती है तब वे समझ जाते हैं कि दर्दी का निकाचित कर्म उदयमें होने से स्वास्थ्य प्राप्तिमें विलंब होगा ।
____सं. २०५२ में महा तपस्वी प.पू.आ.भ.श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. का चातुर्मास अहमदाबादमें आंबावाडी विस्तार के उपाश्रय में था । उनके शिष्य मुनिराज श्री मृदुरत्नसागरजी म.सा. को रीढ के मणकोंमें दर्द था। एक श्रावक डॉ. खान को म.सा. के उपचारके लिए उपाश्रयमें ले आये । बीमार मुनिवर लकड़ी की पाटके उपर लेटे हुए थे । डोक्टर को बैठने के लिए पाटके पासमें कुर्सी की व्यवस्था रखी गयी थी । किन्तु विनयी एवं विवेकी डो. खान कुर्सी पर बैठे नहीं । उन्होंने खड़े खड़े मुनिवरकी सेवा की एवं बादमें नीचे बैठकर बातचीत की ।
इस प्रसंग से उनको उपरोक्त आचार्य भगवंत के तपोमय जीवन का परिचय हुआ । पूज्यश्री के जीवनमें रहे हुए भद्रिकता, नम्रता,