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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ पता : लक्ष्मणभाई (नाई श्रावक) त्रिपोलिया बाजार, जोधपुर (राजस्थान) अथवा जैन क्रिया भवन, आहोरकी हवेली के पास, मोती चौक, जोधपुर (राजस्थान), पिन : ३४ २००१.
प्रतिदिन २८ हजार रुपयोंकी आमदनी युक्त पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय बंद करके अहिंसामय जैन धर्म का अद्भुत रूपसे
पालन करनेवाले डॉक्टर खान महमदभाई कादरी ( पठाण) ___ सत्संग भी भीषण भव रोग को मिटानेवाला दिव्य औषध है एवं कुसंग-भवरोग को बढानेवाला महा कुपथ्य है ।
पठाण जाति (मुसलमान कुल) में उत्पन्न हुए डो. खान महमदभाई कादरी (उ. व. ५७) कुसंग के परिणाम से नील गायों का शिकार करने के बड़े शौकीन थे । अपने विशाल पोल्ट्री फार्ममें हजारों की संख्यामें मुर्गियों को पालते थे एवं उनके अंडे बेचते थे । जिनसे उनको प्रतिदिन २८००० रुपयों की आमदनी होती थी । मगर किसी धन्य क्षणमें एक श्रावक के परिचयसे एवं जैनाचार्य के सतसंग से उनके जीवनमें आश्चर्यजनक परिवर्तन आया एवं उन्होंने उपरोक्त व्यसन एवं हिंसक व्यवसायका तुरंत त्याग करके अहिंसाप्रधान जैनधर्म का अत्यंत अहोभाव पूर्वक स्वीकार किया।
आज से करीब १७ साल पहले की बात है। डॉ. खान जीपमें बैठकर, बंदूक हाथमें लेकर, खंभात के जंगलों में नील गायों का शिकार करने के लिए जा रहे थे । पूर्वजन्म के पुण्योदयसे उसी जीपमें एक श्रावक के साथ परिचय हुआ । धर्मनिष्ठ सुश्रावकने उनको शिकार के व्यसन द्वारा मिलनेवाली नरक आदि दुर्गतियों का शास्त्रानुसारी वर्णन करके सुनाया । एवं सभी जीवोंमें परमात्मा बिराजमान है। सभी जीव सुखसे जीना चाहते हैं । मरना किसीको पसंद नहीं है, इत्यादि प्रेमसे समझाया ।