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नेत्रज्योति दाता महामंत्र
वि. सं. २०३१ की बात है कि : पूज्य गुरुदेव निवृत्त होकर मुनि मण्डल गुरुदेव की पावन सेवा में मेवाड़ भूषण धर्म सधाकर श्री प्रतापमलजी महाराज बैटा हुआ था। लगभग रात्रि के ८-०० ही बजे होंगे कि अपना यशस्वी चार्तुमास मालव ही की धर्मनिष्ठ न जाने आज गुरुदेव ने हम सभी को विश्राम के लिए नगरी इन्दौर का चार्तुमास पूर्ण करके आप श्री के कह दिया। हमने कहा गुरुदेव! अभी तो आठ ही बजे चरण सरोज महाराष्ट्र की भूमि को पावन करने के है। गुरुदेव ने फरमाया अब मैं कल ही बात करूँगा। लिए गतिशील थे।
हम सभी मुनि अपने-२ आसन पर विश्राम हेतु चल ___ इन्दौर से गुरु प्रवर आदि समस्त मुनि मण्डल दिये।
का विहार बडवाह की ओर हुआ। मुनि मण्डल चन्द गुरुदेव त्रिकरण, त्रियोग को एक चित्त करके दिनों में ही बड़वाह पधार चुका। कुछ दिन विश्राम महामंत्र नवकार का स्मरण करते-२ निद्राधीन हो करके विहार करने का ही विचार था कि अचानक गये। लगभग रात्रि के चार बज चुके थे। गुरुदेव के पूज्य गुरुदेव श्री के नेत्रों में तकलीफ हो गई। श्री संघ कानों में निम्न वाक्य सुनाई दियेने सेवा का पूर्ण लाभ लिया। अच्छे से अच्छे बड़े 'तूं! क्यों फिक्र करता है, तेरे पास चौदह पूर्व का डाक्टरों ने जी जान से सेवा का लाभ लिया, किन्तु सार महामंत्र है। उसका अट्ठम तप (तेला तप) अन्ततोगत्वा निराशा ही हाथ लगी।
करके जाप कर। आनन्द मंगल होगा।' इन शब्दों को __दिन प्रतिदिन नेत्रों की ज्योति घटती ही चली जा सुनकर तत्काल जाग्रत हुए और अपने जाप में जुट गये। रही थी। ऐसी स्थिति में पूज्य गुरुदेव श्री जी काफी प्रातः समय नवकारसी के वक्त एक मुनि जी चिन्तित थे। वह इसी लिए कि नेत्र ज्योति के अभाव । (श्रमण संघीय प्रवर्तक गुरुदेव श्री रमेश मुनिजी म. में शास्त्रों का पठन-पाठन, स्वाध्याय, मुनिचर्या सा.) गोचरी के लिए जा रहे थे। गुरुदेव ने कहा
आदि समस्त कार्य रूक जायेगा। सन्त सतियों की 'आज मेरे लिए कुछ भी मत लाना'। क्यों गुरुदेव? पढ़ाना गुरुदेव अपना प्रथम कर्तव्य मानते थे। 'आज मैं उपवास करूँगा' पुनः मुनि श्री ने निवेदन लगभग अपने ७२ वर्ष की उम्र तक उसे उन्होंने एक किया; 'आपकी दवाई चालू है। प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने नहीं अपितु सेंकड़ो साधु-साध्वीयों को विद्याध्ययन फरमाया- 'अब सभी दवा बन्द है। अब नवकार करवाया। इस प्रकार के अनेक प्रश्न गुरुदेव के मन्त्रकी ही महौषधि लेकर तेला तप करूँगा।' तीन मानस में उमर रहे थे। इन्हीं विचारों में पूज्य गुरुदेव दिन में गुरुदेव ने सवा लाख जाप सहित तेला तप खोये हुए थे।
किया। तप जप के पुन्य प्रताप से पूज्य गुरुदेव की ___ जब से मैं (गौतम मुनि) दीक्षित हुआ तभी से मैंने नेत्र ज्योति बढ़ती ही चली गई। यह ज्योति अन्तिम देखा कि आप श्री की अत्याधिक आस्था समय २०३७ तक वसी ही बनी रही जैसी कि पहले मन्त्राधिपति महामंत्र नवकार पर ही थी। डाक्टरों की थी। यह देन है नेत्रज्योति दाता महामन्त्र नवकार ओर से स्पष्ट उत्तर मिल चुका था कि अब नेत्र की। नवकार महामन्त्र कलिकाल का कल्पतरु ही है ज्योति ...'
हमें अनुभूति चाहिए तो त्याग और आस्था के साथ __ यह सुनते ही हम सभी मुनिराज काफी चिन्तित इसका स्मरण करेंगे। थे। किन्तु किया क्या जाता? प्रतिक्रमण आदि से