SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महामन्त्र से मैंने पाया गुरू श्री प्रताप प्रवर्तक गुरु श्री रमेश मुनिजी के सुशिष्य गौतम मुनि 'प्रथम' वि. सं. २०३० की बात है कि जब मैं प्रथम जैन श्रमण के निकट में आया। वे उन श्रमण है कवि रत्न श्रद्धेय श्री केवल मुनि जी महाराज। जिनकी कृपा द्रष्टि से मुझे महामन्त्र जैसा मन्त्र सीखने को मिला। साथ ही मुनि प्रवर से अन्य बातें भी मिली। कंठस्थ होने के पश्चात मुनि श्री ने मुझे नित्य स्मरण करने की प्रेरणा भी दी। मुनि श्री अपना चार्तुमास पूर्ण करके विहार कर चुके। उसी दिन से मेरी आस्था पूर्ण रूपसे नवकार मन्त्र पर बन चुकी थी। ऐसे तो मैं जाति से जैन नहीं हूँ किन्तु बचपन से ही मेरी जैन धर्म के प्रति अनन्य रुचि ब आस्था रही है। यह मैं अपना सौभाग्य ही मानूँगा । सात आठ माह मुझे किसी भी जैन सन्तों का सांनिध्य नहीं मिला। किन्तु नवकार मन्त्र का जाप वैसे ही चल रहा था जैसे कि श्रद्धेय कवि श्री ने नियम करवाया था। २०३१ का वर्षावास हमारे नगर जालना में (महाराष्ट्र) पूज्य गुरूदेव श्री प्रतापमलजी महाराज एवं मझधाराभूषण श्रमण संघीय प्रवर्तक गुरुदेव श्री रमेश मुनि जी महाराज आदि ठाणा ११ का वर्षावास था। यह जैन श्रमण से मेरा द्वितीय सम्पर्क था किन्तु सम्पर्क के पश्चात् भी मुझे मुनियों के नाम याद नहीं थे। तब मैंने घर आकर अपनी धर्ममाता श्री सौ. जड़ाव कुंवरबाई गोलेच्छा से पूछा। उन्होंने मुझे गुरूदेव का पूर्ण परिचय बतलाया। तब से मुझ अत्याधिक मुनिराजों से सम्पर्क रहा। फलस्वरूप मेरे फ अन्तरमान में जैन श्रमण बनने की इच्छा जाग्रत हुई। मैंने यह विचार गुरुदेव की सेवा में रखे। साथ में यह भी कह दिया कि मैं जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता हूँ। गुरुदेव ने फरमाया- हम तुम्हें पूर्ण रुपेण अध्ययन का संयोग देंगे। गुरुदेव ने अपना चातुर्मास पूर्ण कर के आंध्र प्रदेश की ओर विहार किया। न तो कभी गुरूदेव ने पत्र दिया, न कोई सूचना । किन्तु दीक्षा की प्रबल इच्छा के कारण मैं बिना किसी के कहे अपने घर से निकल चुका। न तो मुझे किसी ट्रेन का ज्ञान था, न मुझे गुरूदेव कहाँ विराजते हैं यह ज्ञान था। किन्तु महामंत्र पर पूर्ण आस्था थी। अतः जिस गाड़ी में बैठता वह मुझे गुरुदेव के चरणों में पहुँचा देती। यह सब नवकार मंत्र की देन थी। इस समय मेरी उम्र लगभग १२-१३ वर्ष के आसपास होगी। जब परिवार वालों को ज्ञात हुआ कि वह लेने के लिए पहुँच हो जाते, यह क्रम लगभग ७ बार चला। एक समय को बात है कि जब मैं धूप से स्टेशन की ओर चल दिया । चन्द मिनटों में परिजन भी वहीं पहुँच गये। इतने में ट्रेन भी आ गई। मैं बिना टिकट ही ट्रेन में बैठा हुआ उन्हें देख रहा। मन ही मन नवकार मन्त्र का स्मरण करता रहा। आप आश्चर्य न करें, वे मुझे नहीं देख सके। यह है " महामंत्र नवकार का अद्भुत चमत्कार।" 'महामंत्र से मैंने पाया संयम जीवन ।' சு
SR No.032463
Book TitleJena Haiye Navkar Tene Karshe Shu Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagar
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2015
Total Pages260
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy