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________________ श्रद्धासे नत होता मस्तक महाराष्ट्र केसरी पू. सौभाग्यमलजी म. के आज्ञावर्तिनी महाराष्ट्र सौरभ चाँदकुंवरजी स. म. __ मंत्राधिराज नवकारमंत्र की महिमा उस गुलाब स्मरण में ही मन रमा था। घबराई हुई सतियाँ को पुष्प के सुरभि की भाँति है जो स्वयं ही मानव-मनको धीरज बंधाया व प्रभु नाम पर भरोसा रखकर आगे सुरभित बना देती हैं। इस नवकार ने सर्प को माला में बढ़े। संयोग की बात है। प्रभुने हमारी पुकार सुन ली। परिवर्तित कर दिया, सुलीको सिंहासन बनाया, कोढ़ उस निर्जन स्थान में एक बस आकर रूकी। कसरावद का रोग हटाया। ये सब सुनो सुनाई बातें हो गयी पर के दर्शनार्थी भाई उत्तर पड़े। मनमैं धीरज बंधा। और श्रद्धासे किया हुआ स्मरण हमें भी अवश्य वे दर्शनार्थी अगले विश्राम तक हमारे साथ रहे। चमत्कार बता देता है। प्रभु भक्ति में प्रभु नाम में निर्बाधापूर्वक हमारी यात्रा सफल हुई। वहाँ जाकर हम वह शक्ति होती है कि वह सहज ही अभिव्यक्ति के कुछ देर बैठे ही थे कि पलासनेर की एक मेटेडॉर आ द्वार खोल देती है। चाहिए आस्था तो अवश्य, पा रूकी। दर्शनार्थी भाई ने विहारकी सुख शांति पूछते हुए जाएँगे सही रास्ता। कहा, 'रास्ते में आपको कुछ तकलीफ तो नहीं हुई सन १९८२ में हम अपनी शिष्यावृंद सह न?' मैंने कहा, आनंद ही आनंद है भाई!' श्रावकजी महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश की ओर आ रहे थे। साथ में ने कहा, 'हमें लगा उस शेरने..।' मैंने पूछा कैसा दो आदमी भी थे। घाटों का रास्ता। बीहड़ जंगल! शेर?' श्रावकजीने कहा-हम आ रहे छे ड्रायवरने साथ में छोटी छोटी साध्वीयाँ। मौत का नहीं पर रफ्तार तेज कर ली नहीं तो! गाडी के पीछे पीछे ही शील-रक्षा का भी तो प्रश्न रहता हैं। एसे समय १-४ दहाड़ता आ रहा था। वह उन्होंने जो स्थान बताया जंगली व्यक्ति मिले। वह कहने लगे, 'वाह महाराज! ठीक वही था जहाँ हम आहारादि के लिए रुके थे पर आगे जाओ। मुफत का तैयार खाना मिल जाएगा। देखिए नवकार की महिमा! आधे घंटे के पूर्व ही हमारे जाओ जाओ हम भी आगे आ रहे हैं। अब मैं तो पूरी उपर क्या गुजरना था? श्रावकजी के पास मेटेडॉर तरह घबरा गई, भला ये आगे आकर क्या करेंगे? थी। अतः उन्होंने रक्तार बढ़ा ली पर हम पथिकोंके कहीं हानि तो नहीं है इनसे? अब सबको नवकार मंत्र पास भी नवकार महामन्त्र की कार थी जिसके कारण का जाप करने को कहा। पहले विश्रामसे जो कुछ हमारे संकट टल गए। धन्य है प्रभु-नामकी अपार आहारादि लाये थे वह आरोगना था, अब रुकना माहमा का! कहाँ? कछ समझ में नहीं आया। एक स्थान पर 'हर लम्हा लबों पर मेरे नवकार का नाम रहे। नवकार मंत्र की कार डालकर बैठ गए। नवकार . 'चाँद' चारू चरणोमें तेरे निशदिन मेरा ध्यान रहे॥'
SR No.032463
Book TitleJena Haiye Navkar Tene Karshe Shu Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagar
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2015
Total Pages260
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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