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आमुख
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निसीहज्झयणं आरोपणा के पांच प्रकार होते हैं१. प्रस्थापिता-प्रायश्चित्त वहन करते समय अन्य प्रायश्चित्त के दिनों को जोड़ कर दी जाने वाली आरोपणा।
२. स्थापिता वहन किए जाने वाले प्रायश्चित्त से अन्य प्रायश्चित्त को किसी कारण से अलग रख कर दी जाने वाली आरोपणा।
३. कृत्स्ना-जितनी प्रतिसेवना की, उतने दिनों की आरोपणा। ४. अकृत्स्ना-प्राप्त प्रायश्चित्त में कुछ दिनों को कम कर दी जाने वाली आरोपणा। ५. हाडहडा-तत्काल वहन कराई जानेवाली आरोपणा।
प्रस्तुत उद्देशक में प्रस्थापिता, स्थापिता, कृत्स्ना और कृत्स्ना-इन चार आरोपणाओं से सम्बन्धित विषय का कथन करते हए विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार प्रायश्चित्त-वहनकाल में लगे दोषों की सानुग्रह एवं निरनुग्रह आरोपणा दी जाती है। इस प्रकार स्थापिता एवं प्रस्थापिता आरोपणा के विविध निदर्शनों की दृष्टि से यह उद्देशक सम्पूर्ण आगमवाङ्मय में अपना वैशिष्ट्य रखता है।