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निसीहज्झयणं
उद्देशक १६ : सूत्र ५१
३५६ दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले परिष्ठापयति, परिष्ठापयन्तं वा स्वदते। उच्चार-पासवणं परिद्ववेति, परिद्ववेतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं तत्सेवमानः आपद्यते चातुर्मासिकं परिहारहाणं उग्घातियं॥
परिहारस्थानम् उद्घातिकम्।
परिष्ठापन करता है अथवा परिष्ठापन करने वाले का अनुमोदन करता है।५
इनका आसेवन करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।