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________________ उद्देशक १२ : टिप्पण २६६ निसीहज्झयणं १५. परिखा-चूर्णिकार ने परिखा का अर्थ खातिका किया २८. गहन और वन-शब्दकोष के अनुसार गहन और वन है। वैसे परिखा ऊपर नीचे समान रूप से खोदी जाती है जबकि एकार्थक शब्द हैं। निशीथ चूर्णि में गहन का अर्थ कानन और वन खातिका ऊपर से चौड़ी और नीचे से संकड़ी होती है। का अर्थ उद्यान किया गया है।९ भगवती की वृत्ति के अनुसार १६. उत्पल-द्वीपविशेष अथवा समुद्रविशेष। जलाशय के नगर का निकटवर्ती उपवन कानन, दूरवर्ती वृक्षसंकुल प्रदेश प्रकरण में होने के कारण इसका अर्थ भी जलाशय-विशेष होना वन और फूलों से लदा वृक्षसंकुल बगीचा उद्यान कहलाता चाहिए। है। एकार्थक कोष के अनुसार गहन अत्यन्त सघन एवं दुष्प्रवेश्य १७. पल्वल-जल का छोटा गड्डा। छोटा तालाब।' होता है तथा वन एक जाति के वृक्षों से संकुल और नगर से दूर १८. उज्झर-पर्वतीय तट से जल का नीचे गिरना, पहाड़ी होता है। झरना। २९. नूम-प्रच्छन्नगृह, गुफा आदि।" चूर्णिकार ने नूमगृह का १९. निर्झर-झरना। अर्थ भूमिगृह किया है। २२ २०. वापी-बावड़ी, यह समवृत्त होती है। ३०. वन विदुर्ग-एकजातीय अथवा अनेकजातीय वृक्षों से २१. पुष्कर-पुष्करिणी-चतुष्कोण बावड़ी, कमलयुक्त ___व्याप्त वन ।२३ जलाशय । स्थानांगवृत्ति के अनुसार वापी चतुष्कोण एवं पुष्करिणी ३१. पर्वतविदग-बहत से पर्वतों का समूह ।२४ वृत्ताकार होती है। तुलना हेतु द्रष्टव्य भगवई ५/१८९ का भाष्य, ठाणं २/ २२. दीर्घिका-नहर, जिसमें से जल की प्रणालियां निकलती ३९० एवं अणुओगद्दाराई ३९२ का टिप्पण। हों, वह ऋजु जलाशय। ३२. ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश २३.गुंजालिका-व्रकाकार नहर ।२ परस्पर कपाट से संयुक्त द्रष्टव्य-निसीहज्झयणं ५/३४,३५ का टिप्पण। अथवा अनेक नालिकाओं वाला जलाशय।३ ३३. ग्राम महोत्सव यावत् सन्निवेश महोत्सव-निशीथ२४. सर:-वह तालाब, जिसके जल का सोता भीतर होता चूर्णिकार के अनुसार ग्राम में यात्रा करना ग्राम-महोत्सव है। इसी है। नैसर्गिक जलाशय, बांध।१४ प्रकार सन्निवेशमहोत्सव पर्यन्त अन्य महोत्सवों के विषय में ज्ञातव्य २५. सर:पंक्ति -पंक्तिबद्ध नैसर्गिक जलाशय।५ २६. सरःसरःपंक्ति-तालाबों की वह परस्पर कपाट संयुक्त ३४. ग्रामवध यावत् सन्निवेशवध-ग्राम का वध-सारे श्रेणी, जिसमें एक तालाब का पानी संचरण-द्वार से दूसरे तालाब में ग्रामवासियों की हत्या ग्रामघात अथवा ग्रामवध है। प्रस्तुत सूत्रोक्त जाता है। शेष शब्दों के विषय में भी इसी प्रकार ज्ञातव्य है। २७. कच्छ-इक्षु आदि की वाटिका, जलबहुलप्रदेश, नदी के ३५. अश्वकरण यावत् शूकरकरण-करण का अर्थ जल से वेष्टित वन आदि। चूर्णिकार के अनुसार इक्षुवन आदि को है-प्रशिक्षण । घोड़े, हाथी, ऊंट, गाय आदि का प्रशिक्षण क्रमशः कच्छ कहा जाता है। अश्वकरण, गजकरण, उष्ट्रकरण, गौकरण आदि कहलाता है। २७ १. निभा. भा. ३ चू. पृ. ३४४-परिहा खातिया। १५. निभा. भा. ३ चू. पृ. ३४६-ताणि चेवं बहूणि पंतीठियाणि २. भग.५/१८९ का भाष्य पत्तेयबाहुजुत्ताणि सरपंत्ती। ३. पाइय. १६. वही-ताणि चेव बहूणि अन्नोन्नकवाडसंजुत्ताणि सरसरपंत्ती। ४. भग. ५/१८९ का भाष्य १७. पाइय. ५. पाइय. १८. निभा. ३ चू. पृ. ३४६-इक्खुमादि कच्छा। ६. वही १९. वही, गहणाणि काननानि.....वणाणि उज्जाणाणि। ७. वही २०. (क) भग. वृ. ५/१८९ ८. निभा. भा. ३ चू. पृ. ३४६-समवृत्ता वापी। (ख) एका. को. पृ. ३१२ ९. वही-चातुरस्सा पुक्खरिणी। २१. पाइय. १०. स्था. वृ. प. ८३-वापी चतुरस्रा, पुष्करिणी वृत्ता। २२. निभा. भा. ३ चू. पृ. ३४४-णूमगिहं भूमिधरं । ११. अनु.चू. पृ. ५३-सारणी रिजु दीहिया। २३. वही, पृ.३४६-एगजातीय-अणेगजाईयरुक्खाउलं गहणं वणविदुग्गं। १२. वही-बंका गुंजालिया। २४. वही-बहुएहिं पव्वतेहिं पव्वयविदुग्गं। १३. निभा. भा. ३ चू, पृ. ३४६-अन्नोन्नकवाडसंजुत्ताओ गुंजालिया २५. वही, पृ. ३४७-ग्रामे महो ग्राममहो-यात्रा इत्यर्थः। भन्नंति।......णिक्का अणेगभेदगता गुंजालिया। २६. वही-ग्रामस्य वधो ग्रामवधो-ग्रामधातेत्यर्थः। १४. अमवृ. प. १४६-सरःस्वयंसंभूतो जलाशयः। २७. वही, पृ. ३४८-आससिक्खावणं आसकरणं एवं सेसाणि वि।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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