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________________ निसीहज्झयणं शब्द विमर्श १. रायतेपुरिया - राजा के अन्तःपुर में रहने वाली, राजपत्नी ।' २. णीहरिय - निकालकर । ४. सूत्र ६ द्वारपालों, पशुओं, अटवी-निर्गत यात्रियों, दुर्भिक्षपीड़ितों आदि के लिए राजा के द्वारा प्रदत्त अशन, पान आदि को ग्रहण करने पर भी राजपिण्ड ग्रहण सम्बन्धी दोष संभव हैं तथा जिनके निमित्त भोजन दिया जा रहा है, उनके मन में अप्रीति हो सकती है। अन्तराय आदि अन्य अनेक दोष भी संभव हैं। अतः प्रस्तुत सूत्र में उसे ग्रहण करने वाले को प्रायश्चित्तार्ह माना गया है। शब्द विमर्श १. दोवारियभक्त द्वारपालों के निमित्त बना भोजन । २. पसुभत्त - पशुओं के निमित्त बना भोजन । ३. भयगभत्त-भृतक के निमित्त बना भोजन । ४. बलभत्त-बल का अर्थ है चतुरंगिणी सेना-पदाति, अश्व, हाथी और रथ उसके लिए बना भोजन। ५. कयगभत्त- क्रयक- दास के लिए बना भोजन। चूर्णिकार ने दास के लिए अकृतवृत्ति शब्द का प्रयोग किया है।" ६, ७. कंतारभत्त, दुब्भिक्खभत्त-कान्तार (अटवी) निर्गत तथा दुर्भिक्ष पीड़ितों के लिए बना भोजन जो राजा के द्वारा दिया जाए, वह क्रमशः कान्तारभक्त एवं दुर्भिक्षभक्त है। ८. दमगमत्तदीनजनों के निमित्त बना भोजन । ९. गिलाणभत्त - आरोग्यशाला में अथवा अन्य रोगियों को दिया जाने वाला भोजन । ' १०. वद्दलियाभत्त-सात दिनों तक निरन्तर वर्षा होने पर - अतिवृष्टि से पीड़ित लोगों के निमित्त राजा द्वारा दिया जाने वाला भोजन । ११. पाहुणभत्त राजा के अतिथि के निमित्त बना भोजन। " (विस्तार हेतु द्रष्टव्य-ठाणं ९/६२ का टिप्पण) ५. सूत्र ७ जहां राजकुल का धान्यभंडार हो, जहां सुरा, मधु, सीधु आदि १. निमा २, चू.पू. ४५३- अंतेपुरवासी अंतेपुरिया रण्णो भारिया इत्यर्थः । २. वही, गा. २५२९-२५३१ ३. वही, भा. २ चू. पृ. ४५५ - दोवारिया दारपाला । ४. वही बलं चाहिं पाक्कबलं आसवलं हल्थिय रहबलं । ५. वही- एतेसिं कयवित्तीण वा अकयवित्तीण वा णावालग्गाण वा जं रायकुलातो पेङ्गगादि भत्तं निमाच्छति । ६. वही कंताराते अडविणिग्गयाणं मुखत्ताणं धिक्खे राया देति तं दुखतं। ७. वही दमगा रंका, तेसिं भत्तं दमगभत्तं । १९५ उद्देशक ९ : टिप्पण विविध पानक रख जाते हों, दूध, दही आदि का संचय हो, विविध प्रकार के धान्य कूटे जाते हों अथवा विविध प्रकार के रत्न रखे गए हो ये स्थान दोषायतन माने गए हैं वहां अज्ञान अथवा प्रमादवश चले जाने से भिक्षु के प्रति शंका हो सकती है, रुक्ष प्रकृति वाले रक्षक भिक्षु को बंदी बना सकते हैं, उसे शारीरिक कष्ट दे सकते हैं।" अतः राजधानी में पहुंचने के बाद भिक्षु को यथाशीघ्र इनकी जानकारी कर लेनी चाहिए। 1 सूत्र में चार-पांच रात का उल्लेख है। भाष्यकार ने इसकी अनेक प्रकार से संगति बिठाई है • पहले दिन जानकारी, पृच्छा, गवेषणा न करे तो मासलपु दूसरे दिन मासगुरु, इस क्रम से चौथे दिन चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। • कुछ आचार्यों के मतानुसार पहले दिन किसी व्याक्षेप अथवा श्रान्ति के कारण जानकारी न करे तो कोई प्रायश्चित्त नहीं, दूसरे दिन मासलघु, इस क्रम से पांचवें दिन चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। • एक मत के अनुसार पहले दिन जानकारी न करने पर भिन्न मास का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है, फलतः पांचवें दिन चतुर्गुरु प्रायश्चित्त आता है। • एक अन्य मत के अनुसार पहले दिन का प्रायश्चित है बीस दिन रात, दूसरे दिन भिन्नमास, इस क्रम से पांचवें दिन चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। १२ शब्द विमर्श १. कोष्ठागार - धान्यभंडार, जहां सण आदि सत्रह प्रकार के धान्य रखे जाते हैं । ३ २. भाण्डागार - रत्नभंडार, जहां सोलह प्रकार के रत्न रखे जाते हैं। ३. पानशाला - जहां सुरा, मधु, सीधु, मत्यण्डिका, मृद्विका आदि के पानक रखे जाते हैं।" ८. वही आरोग्गसालाए वा इतरमि त्ति विणावि आरोग्गसालाए जं गिलाणस्स दिजति तं मिला। ९. वही सत्ताहले पड़ते मतं करेति राया। १०. वही रण्णो कोति पाहुणगो आगतो तस्स भत्तं आदेसभतं । ११. वही, गा. २५३८ व उसकी चूर्णि १२. वही, गा. २५३६, २५३७ १३. वही, भा. २, चू.पू. ४५६ - जत्थ सण सत्तरसाणि धण्णाणि कोट्ठागारो । १४. वही-भंडागारो जत्थ सोलसविहाइं रयणाई । १५. वही पाणागारं जत्थ पाणिचकम्मं तो सुरा मधु-सी-खंडमच्छंडिय मुहियापभित्तीण पाणगाणि ।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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