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टिप्पण
उससे निर्मित माला भी को भी भेंडमालिका कहा जा सकता है क्योंकि चूर्णि में भेंडमाला के विषय में मोरंगमयी उल्लेख मिलता
१. सूत्र १-३
गन्ध-द्रव्यों के प्रयोग के समान माला का प्रयोग भी अनाचार है क्योंकि यह सूक्ष्मजीवों की हिंसा एवं लोकापवाद का हेतु है।' माला के निर्माण में मुख्यतः वनस्पतिकायिक एवं तदाश्रित जीवों की हिंसा होती है। माला धारण करना (पहनना) विभूषा है तथा उनका संग्रहण आसक्ति और मूर्छा की अभिव्यक्ति तथा वृद्धि का हेतु है। इस दृष्टि से माला बनाने, रखने तथा धारण करने से अहिंसा, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह-मुख्यतः इन तीन महाव्रतों का उपघात संभव है। मातृग्राम के साथ अब्रह्म के संकल्प से माला का निर्माण, धारण एवं परिभोग करना मैथुन-संज्ञा के अंतर्गत है। ऐसा करने वाले मुनि के लिए सूत्रकार ने गुरुचातुर्मासिक परिहारस्थान का विधान किया
है।
__ प्रस्तुत सूत्रत्रयी में सोलह प्रकार की मालाओं का उल्लेख है। उनके विषय में कुछ संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है
१. तृणमालिका-घास की माला, जैसे-प्राचीन काल में मथुरा में वीरण (खस) आदि के तृण से पंचवर्णी मालाएं बनाई जाती थीं।
२. मूंजमालिका विद्या आदि की सिद्धि के लिए मूंज की मालाओं का उपयोग होता था।
३. वेत्रमालिका-बेंत के काष्ठ से भी मालाओं का निर्माण होता था।
४. भेंडमालिका-भेंड का अर्थ है वनस्पति-विशेष या एरण्ड काष्ठ। मराठी भाषा में भेंडी का अर्थ है पारीष पीपल । इसके फलों में एरण्ड के बीज की आकृति के चार-चार बीज होते हैं। भेंडमालिया से संभवतः इन्हीं बीजों से निर्मित माला का कथन किया गया है। भावप्रकाश निघंटु में बड़ी इलायची की अनेक उपजातियों में एक है-बंगाल, आसाम आदि क्षेत्रों में होने वाली मोरंग इलायची।" १. दस. अ.चू. पृ. ६२,६३-गन्धमल्ले सुहुमघायउड्डाहा । २. निभा. भा. २, चू.पृ. ३९६-वीरणातितणेहिं पंचवण्णमालियाओ
कीरति जहा महुराए। ३. वही-मुंजमालिया जहा विज्जातियाणं जडीकरणे। ४. वही-वेत्तकद्वेसु कडगमादी कीरंति। ५. आचू. पृ. १५५-थुल्लसारं भेंडं एरण्डकटुं वा। ६. भा. नि., पृ. ५१५। ७. वही, पृ. २२२।
५. मदनमालिका-मैनफल नामक पौधे के किंचित् हरिताभ श्वेत सुगन्धित फूलों से निर्मित माला अथवा मोम के फूलों से निर्मित पंचवर्णी माला।
६. पिच्छमालिका-मोर पंखों से निर्मित माला।
७. दंतमालिका-दंतमयी माला के विषय में भाष्यकार लिखते हैं–पोंडिय दंते । पोंड या पोंडय का अर्थ है-यूथाधिपति। प्रतीत होता है कि उस समय हाथीदांत की मालाओं का भी उपयोग होता था।
८. शृंगमालिका-सींग से निर्मित माला, जैसे-पारसी लोग महिष के सींगों से माला बनाते थे।१२
९. शंखमालिका-शंख और कोड़ियों से निर्मित माला।
१०. हड्डमालिका–अस्थियों से निर्मित मालाओं का भी कहींकहीं प्रचलन था, जैसे-बंदर की हड्डी से निर्मित माला बच्चों को पहनाई जाती थी।३
११. काष्ठमालिका-चन्दन आदि के काष्ठ से विविध प्रकार की मालाएं बनाई जाती थीं।
१२. पत्रमालिका-तगर आदि के पत्तों से निर्मित माला।
१३. पुष्पमालिका-गुलाब, गेंदा, चमेली आदि के फूलों से निर्मित माला।
१४. फलमालिका-फलों से निर्मित माला, जैसे-गुंजाफल (घुघुची) की माला।
१५. बीजमालिका-बीजों से निर्मित माला, जैसे-रुद्राक्ष और ८. निभा.भा. २, चू.पृ. ३९६-भेंडेसु भेंडाकारा करेंति, मोरंगमयी वा। ९. वही-मयणे मयणपुप्फा कीरंति, पंचवण्णा। १०. वही, गा. २२८९ ११. वही, भा. २, चू.पृ. ३९६-हत्थिदंतेसु दंतमयी। १२. वही-महिससिंगेसु जहा पारसियाणं। १३. वही-मक्कडहड्डेसु हड्डुमयी डिंभाणं गलेसु बज्झति। १४. वही-तगरपत्तेसु माला गुज्झति। १५. वही-फलेहि गुंजातितेहिं ।