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उद्देशक ७: सूत्र ९०-९२
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निसीहज्झयणं
पडिच्छंतं वा सातिज्जति॥
करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
स्वाध्याय-पदम्
स्वाध्याय-पद
सज्झाय-पदं ९०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण
वडियाए सज्झायं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया स्वाध्यायं वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते।
९०. जो भिक्षु (स्त्री को हृदय में स्थापित कर)
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री को स्वाध्याय की वाचना देता है अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है।
९१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामाद् मैथुनप्रतिज्ञया ९१. जो भिक्षु (स्त्री को हृदय में स्थापित कर)
वडियाए सज्झायं पडिच्छति, स्वाध्यायं प्रतीच्छति, प्रतीच्छन्तं वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री से स्वाध्याय पडिच्छंतं वा सातिज्जति॥ स्वदते।
(सूत्रार्थ) को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
आकारकरण-पद
आकार-करण-पदं
आकार-करण-पदम् ९२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-: यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया
वडियाए अण्णयरेणं इंदिएणं आकारं अन्यतरेण इन्द्रियेण आकारं करोति, कुर्वन्तं करेति, करेंतं वा सातिज्जति- वा स्वदते।
९२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से किसी इन्द्रिय से आकार-रागात्मक संकेत (चेष्टा) करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है।" -इनका आसेवन करने वाले को अनुद्घातिक चातुर्मासिक (चतुर्गुरु) परिहारस्थान प्राप्त होता है।
तं सेवमाणे आवज्जड़ चाउम्मासियं तत्सेवमानः आपद्यते चातुर्मासिकं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं॥ परिहारस्थानम् अनुद्घातिकम्।