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निसीहज्झयणं
३४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-
वडियाए अप्पणो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा सातिज्जति॥
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उद्देशक ६: सूत्र ३४-३९ यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर आत्मनः कायं लोध्रेण वा कल्केन वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर पर चूर्णेन वा वर्णेन वा उल्लोलयेद्वा उद्वर्तेत लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण का लेप वा, उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा करता है अथवा उद्वर्तन करता है और लेप स्वदते।
अथवा उद्वर्तन करने वाले का अनुमोदन करता है।
३५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३५. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
वडियाए अप्पणो कायं सीओदग- आत्मनः कायं शीतोदकविकृतेन वा । अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर का वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रासुक शीतल जल अथवा प्रासुक उष्ण जल उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, प्रधावेद वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं से उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा वा स्वदते।
है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले सातिज्जति॥
का अनुमोदन करता है।
३६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-
वडियाए अप्पणो कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेंतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया आत्मनः कायं 'फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद) वा रजेवा, 'फुतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा स्वदते।
३६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर पर फूंक देता है अथवा रंग लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है।
वण-परिकम्म-पदं व्रणपरिकर्म-पदम्
व्रणपरिकर्म-पद ३७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३७. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अप्पणो कायंसि वणं आत्मनः काये व्रणम् आमृज्याद् वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर पर आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, प्रमृज्याद्वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा हुए व्रण का आमार्जन करता है अथवा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा स्वदते।
प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा सातिज्जति॥
प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है।
३८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अप्पणो कार्यसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया आत्मनः काये व्रणं संवाहयेद्द्वा परिमर्दयेद् वा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते।
३८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर पर हुए व्रण का संबाधन करता है अथवा परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता है।
३९. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया
वडियाए अप्पणो कार्यसि वणं आत्मनः काये व्रणं तैलेन वा घृतेन वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा वसया वा नवनीतेन वा अभ्यज्याद् वा णवणीएण वा अन्भंगेज्ज वा प्रक्षेद् वा, अभ्यञ्जन्तं वा प्रक्षन्तं वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति॥
३९. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर पर हुए व्रण का तेल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का अनुमोदन करता है।