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________________ उद्देशक ६: सूत्र २८-३३ १२६ निसीहज्झयणं २८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया २८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अप्पणो पाए लोद्धेण वा आत्मनः पादौ लोध्रेण वा कल्केन वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने पैरों पर कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा चूर्णेन वा वर्णेन वा उल्लोलयेद् वा उद्वर्तेत लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण का लेप उल्लोलेज्ज वा उव्वदृज्ज वा, वा, उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा करता है अथवा उद्वर्तन करता है और लेप उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा स्वदते। अथवा उद्वर्तन करने वाले का अनुमोदन सातिज्जति॥ करता है। २९. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया २९. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अप्पणो पाए सीओदग- आत्मनः पादौ शीतोदकविकृतेन वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने पैरों का वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रासुक शीतल जल अथवा प्रासुक उष्ण जल उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं से उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा वा स्वदते। है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। ३०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३०. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अप्पणो पाए फुमेज्ज वा आत्मनः पादौ ‘फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद्) वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने पैरों पर रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा रजेवा, 'फुमेंतं' (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं फूंक देता है अथवा रंग लगाता है और फूंक सातिज्जति॥ वा स्वदते। देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है। काय-परिकम्म-पदं ३१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अप्पणो कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। कायपरिकर्म-पदम् कायपरिकर्म-पद यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३१. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर आत्मनः कायम् आमृज्याद् वा प्रमृज्याद् अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर का वा, आमार्जन्तं वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते। आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है। ३२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अप्पणो कायं संवाहेज्जा वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर आत्मनः कायं संवाहयेद् वा परिमर्दयेद् अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर का वा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते। संबाधन करता है अथवा परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता है। ३३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अप्पणो कायं तेल्लेण वा आत्मनः कायं तैलेन वा घृतेन वा वसया घएण वा वसाए वा णवणीएण वा वा नवनीतेन वा अभ्यज्याद् वा म्रक्षेद् अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, वा, अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा स्वदते। अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति॥ ३३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अपने शरीर का तैल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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