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निसीहज्झयणं
उद्देशक ५ : सूत्र ७६-७८ ७६. जे भिक्खू रयहरणं अहिद्वेति,
अहिटेंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः रजोहरणम् अधितिष्ठति, अधितिष्ठन्तं वा स्वदते।
७६. जो भिक्षु रजोहरण पर अधिष्ठित होता है (बैठता है) अथवा अधिष्ठित होने वाले का अनुमोदन करता है।
७७. जे भिक्खू रयहरणं उस्सीसमूले । यो भिक्षुः रजोहरणम् उच्छीर्षमूले
ठवेति, ठवेंतं वा सातिज्जति॥ स्थापयति, स्थापयन्तं वा स्वदते।
७७. जो भिक्षु रजोहरण को सिरहाने रखता है
अथवा रखने वाले का अनुमोदन करता है।
७८.जे भिक्खू रयहरणं तुयद्देति, तुयढ़ेंतं यो भिक्षुः रजोहरणे त्वगवर्तते, त्वगवर्तमानं वा सातिज्जति
वा स्वदते। तं सेवमाणे आवज्जड़ मासियं । तत्सेवमानः आपद्यते मासिकं परिहारद्वाणं उग्घातियं ॥
परिहारस्थानम् उद्घातिकम्।
७८. जो भिक्षु रजोहरण पर सोता है अथवा
सोने वाले का अनुमोदन करता है। २१ -इनका आसेवन करने वाले को लघुमासिक परिहारस्थान प्राप्त होता है।