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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
क्रियाओंकी व्याख्या भी अनुदानके नियमोंपर आधारित है। वस्तु + वायुभार + जलतरंगसंतारणशील वस्तु वेग । इस वेगका आनयन
_ वायुभार ४ वस्तु X जलतरंग तरंगवेग = क = तरगवन, बाह्य क्रियाओंका प्रभाव
इस गणितका आनयन प्रकाश-संचारणके सिद्धान्तके समान ही किया जाता है। वितत भिन्न सिद्धान्त
जैन लेखकोंने भिन्नके विविध रूपोंका प्रयोग ईस्वी सन्की आरम्भिक शताब्दियोंमें हो किया है । 'धवला' तीसरी जिल्दमें भिन्नके कई रोचक नियम उपलब्ध होते हैं, जो अन्य गणित ग्रन्थोंमें नहीं है।
न
क
(१) नन/प) = न = (२) दमब - (का) - १(काको (३) यदि ८ कातथा के,
____ तो- द (क - के) + मे = म
अ
घवला टीकामें करणीगत वगित राशियोंके वर्गमूलके आनयतमें वितत भिन्नका बहुत सुन्दर प्रयोग किया गया है । यथा
____ "असंखेज्जभागकहियसव्वसजीवरासिणा तदुवरिमवग्गे भागे हिदे किभागच्छदि ! असंखेज्जमागहीण सव्वजीवरासी आगच्छदि । उक्कस्स असंखेज्जासैखेज्जभागव्यहिय सव्वजीव रासिणा तदुवरिमवग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ! जहण्णय सित्ताणंत भाग होणसव्वजीवरासी आगच्छदि । अणंतभागम्महिय सव्वजीवरासिणा तदुवरिमवग्गे भागे हिदे किभागच्छदि ! अणंतभागहीणसव्वजीवरासी आगच्छदि । सम्वत्थकारणं युग्वं च वक्तव्वं । एत्थ उवज्जतीओ . गाहामओ
अवहारवढिरूवाणवहारादो हु लद्ध अवहारो। रूवहिओ हाणीए हीदि हूँ वड्ढीए विवरीदो।। अवहारविसेसेण य छिण्णवहारादु लद्धरुवो। रूकाहिय ऊणा वि य अवहारो हाणिवड्ढीणं । लढविसेसच्छिण्णं लद्धं रूवाहिऊण यं चांबि। अवहार हामि वड्ढीणवहारो सो मुणेयव्वो ।।
-धवला ३ जिल्द, पृ० ४५-४६