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________________ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान २२,(२२) इसका चौथा, पांचवा, छठा, पद क्रमशः पण्णद्वि, वादाल और एकाद कहलाते हैं। अंक द्वारा-(२)" = ६५५३६, (२)31 - (६५५३६)२ या ४२९४९६७२९६, (२) = (४२९४९६७२९६) - १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ .....(न)न -न १३. द्विरुपधनधारा इस धाराक्रमकी संख्याएं घनक्रमसे सम्मिलित है । यथा (२), (४), (९),""(न')३ । १४. द्विरुपधनाधनधारा इस धारा का पहला पद [(२)"]३......"[(४)].........."[(न3)] ' अदच्छेद या अदच्छेद शलाका बड़ी संख्याओंको छोटी या लघु संख्याओंमें अभिव्यक्त करनेके लिए जैन विचारकोंने अर्द्धच्छेद या अढच्छेदशलाका का उपयोग किया है । तिलोयपण्णचि, धवलाटीका, त्रिलोकसार, गोम्मटसार प्रभूति ग्रन्थों में इस ग्रन्थका उल्लेख पाया जाता है । इस गणित क्रियाको निम्नलिखित परिभाषिक शब्दोंके विश्लेषण द्वारा अवगत किया जा सकता है। अदच्छेद-एक संख्या जितनी बार उत्तरोत्तर आधी-आधी की जा सकती है, उस संख्याके उतने अच्छेद कहलाते हैं। यथा-1 - न अबच्छेद = लरि न वर्गशलाका-किसी संख्याके अच्छेदोंके अवच्छेद उस संख्याकी वर्गशलाका होती है । यथा-न को वर्गशालाका - वश न = अछे-अछे न = लरि-लरि न । त्रिकेच्छेद-एक संख्या जितनी बार तीनसे उत्तरोत्तर विभाजित की जाती है, उसके उतने त्रिकच्छेद होते हैं । यथा-न के त्रिकच्छेद -त्रिकेन - लरि ३ न । चतुर्थच्छेद-एक संख्या जितनी बार चारसे विभाजित की जा सकती है, उतने ही उस संख्याके चतुर्थच्छेद होते हैं । यया-न के चतुर्थच्छेद - बछे न = लरि ४ न । अनुच्छेद गणितको 'लघुगणक' सिद्धान्त भी कहा गया है। इस सिद्धान्तकी मौलिकता के सम्बन्धमें गणितके प्रसिद्ध विद्वान् डा० अवधेशनारायणसिंहने लिखा है-"संस्कृत गणित अन्थोंमें इस प्रकारके लघुगणक नियम नहीं मिलते हैं। मेरी दृष्टिसे यह सर्वथा जैनियों का माविष्कार था और उन्होंने इसका प्रयोग भी किया था।"२ बच्छेदों द्वारा राशिज्ञान प्राप्त करनेके सिद्धान्तका विवेचन करते हुए लिखा है"देय राशि परिवर्तित राशि (Substituted) के अर्बच्छेदोंका इष्टराशि के अच्छेदोंमें १. त्रिलोकसार गापा ५३-६६ तथा ७७-८८ तक २. वर्गी-अभिनन्दन-प्रन्थ, प्रकाशक श्री वर्णी हीरक जयन्ती महोत्सव सिमति, सागर, पृ०४९.।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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