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ज्योतिष एवं गणित
एक पंचवर्षीय युगमें २४ पर्व होते हैं ।
धमान संवत्सरके पांच भेद हैं :
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(१) साबन (२) सौर (३) चान्द्र (४) बार्हस्पति (५) नाक्षत्र । इनमेंसे सावन संवत्सर को कर्म-संवत्सर भी कहते हैं । इसके कर्म संवत्सर नाम पड़नेका यह कारण मालूम पड़ता है कि साधारण कामकाजी लोग ३६० दिनमें ही अपने वर्षके कार्यको पूरा करते हैं । इसीसे इस संवत्सरका नाम कर्म संवत्सर पड़ा होगा ।
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एक चान्द्र संवत्सरमें ३५४१३ दिन होते हैं; अतएव एक चान्द्र मासमें ३५४१३ २९३३ दिन होते हैं और एक चान्द्रमासमें दो पक्ष होते हैं । इसीलिए २९३३ दिन = २९३३ दिन - २९३३४१५ मूहूर्त - ४४२३३ मुहूर्त शुक्ल पक्ष और इतने ही मुहूर्त कृष्ण पक्षके भी होते हैं। इस हिसाब से एक तिथिका मान - २९ दिन हेरे, दिन- ३०=२९१३ मुहूर्त । तिथिके भी दिन और रात्रिके भेदसे दो भेद हैं। सौर दिनकी अपेक्षासे दिन तिथि और रात्रि तिथिके पांच-पांच भेद है। उनका क्रम इस प्रकार है ।
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(१) नन्दा (२) भद्रा (३) जया (४) तुका (५) पूर्णा । और रात्रि तिथिके ये भेद है (१) अनावर्ती (२) भोगवर्ती (या सोमतो ) (४) सर्वसिद्धा (५) शुभनामनी ।
जैन ज्योतिषकी गणनासे एक वर्ष में ५ ऋतुएँ होती हैं (१) वर्षा (२) शरद (३) शिशिर ( ४ ) वसन्त ( ५ ) ग्रीष्म । ये ऋतुएँ भी चान्द्र और सौर दोनों ही प्रकारकी होतीं हैं । जैन ग्रम्बोंके उत्तरायण और दक्षिणायनका विचार भी प्राचीन तथा अर्वाचीन हिन्दू ज्योतिष ग्रन्थोंसे भिन्न है। सूर्य प्रज्ञप्ति में अयनका विचार भी इस प्रकार लिखा है :
सावण बहुल पडिवए बालवकरणे अभिजिन्नक्षत्रे । सम्वत्थ पडमसमये जुअस्स आदि वियाणाहि ॥
तत्र उत्तरायणं कुर्वन् सूर्यः सर्वदैव अभिशा नक्षत्रेण सह योगमुपागच्छति । दक्षिणायनं कुर्वन् पुष्येषेति च ।
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अर्थात् श्रावण बदी प्रतिपद् बालवकरण, अभिजित नक्षत्र में दक्षिणायन प्रारम्भ होता है । यह युगका पहला दक्षिणायन है। एक युगके शेष अयनोंका वर्णन इस प्रकार है :प्रथमा बहुल पडिवर विइया बहुलस्स तेरिसीदिवसे । सुद्धस्स य दसमीए बहुलस्स य सप्तमीए उ ॥ सुद्धस्स चउत्थीए पवत्तये पंचमी उ आउट्टी । एमा आबुद्धीयो सव्वाओ सावणे मासे । बहुलस्स सत्तमीए पडमा सुद्धस्स तो चउत्थीए ! बहुलस्सय पडिवए बहुलस्स य तेरिसी दिवसे ॥ सुद्धस्स य दसमीए पवत्तए पंचमी आउट्ठी । एना आउठ्ठीओ सब्बाओ माहमासम्मि ॥