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________________ ३०४ भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मयका अवदान एक युगमें सौर दिन = चान्द्र मास = चान्द्र दिन क्षय दिन भगण वा नक्षत्रोदय " 11 २ भाद्रपद ३ आश्विन ४ कार्तिक ५ मार्गशीर्ष ६ पौष ३० १८३० चान्द्र भगण = ६७ १७६८ चान्द्र सावन दिन = एक सौर वर्ष में नक्षत्रोदय एक अयनसे दूसरे अयन पर्यन्त सौर दिन = १८० ३६७ एक अयनसे दूसरे अयन तक सावन दिन = १८३ "1 वर्तमान महीनोंके नाम १ श्रावण फाल्गुन = = = प्राचीन जैन महीनोंके नाम भी वर्तमान महीनोंके नामोंसे भिन्न मिलते हैं । उनका विवरण इस प्रकार है : १८०० ६२ १८६० = प्राचीन जैन महीनोंके नाम अभिनन्द सप्रतिष्ठा विजया प्रतिवर्धन श्रीयान् शिव ७ माघ ८ ९ चैत्र १० वैशाख ११ ज्येष्ठ १२ आषाढ़ जैन आगम में संवत्सरका मान चार प्रकार का माना गया है । (१) नाक्षत्र संवत्सर = १२ नाक्षत्र मास = १२ x २७३७ दिन = ३२७६७ दिन (२) युगसंवत्सर (३) प्रमान संवत्सर (४) शनि संवत्सर शिशिर हैमवान् वसन्त कुसुमसंभव निदाघ दान-विरोधी इनमें से पहले नाक्षत्र सम्वत्सरके १२ भेद हैं । श्रावण, भाद्रपद आदि । जब बृहस्पति सभी नक्षत्र समूहको भोगकर पुनः अभिजित् पर आता है तब यह महानाक्षत्र संवत्सर होता है । इसका समय १२ वर्षका है । = चान्द्रवर्ष = २९३३ × १२ = ३५४ + ३ दिन अधिक मास सहित चान्द्रवर्ष : ३८३६ दिन सौरवर्ष = १२ x ३० = ३६६ दिन ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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