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हूँ। मेरे आग्रहपर उन्होंने ग्रन्थके प्रारम्भमें 'अतध्वनि' के रूपमें अपना लघुवक्तव्य लिख देनेका जो कष्ट किया है, तदर्थ मैं उनका विशेष आभारी हूं।
मित्रप्रवर, महामनीषी, स्व० डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्रीके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए मेरे पास शब्द नहीं है । उनका समग्र जीवन विद्वानोंके लिए आदर्श है । उनका छात्र प्रेम एवं साहित्यिक श्रम, नई पीढोके अन्वेषकोंके लिए अनुकरणीय हैं । विद्वत्परिषद् उनके शोध-खोजको प्रकाशित कर अपनेको धन्य मानती है ।
____अंतमें, महावीर प्रेसके मालिक, मित्रवर, श्री बाबूलालजी फागुल्लको मैं धन्यवाद देता है जिनकी मुद्रण संबंधी विशेष प्रतिभाके कारण प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन अत्यन्त सुन्दर एवं नितान्त नयनहारी बन सका । उज्जैन
(महामहोपाध्याय) दि० २५-५-१९८३
डॉ. हरीन्द्र भूषण जैन मंत्री-भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद्, निदेशक-अनेकान्त शोधपीठ, पो० बाहुबली जिला-कोल्हापुर, (महाराष्ट्र), ४१६-११०