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________________ ज्योतिष एबं गणित २९९ करना है । और इस विश्लेषण क्रममें बाह्य और आन्तरिक व्यक्तित्वसे सम्बन्धित गुणोंपर विचार किया है । औद्योगिक और व्यावसायिक प्रगति, शिक्षा, श्रमशीलता, विकास, उन्नतिके अवसरोंकी प्राप्तिका निर्णय स्वरके गणित द्वारा किया गया है । स्वर-ध्वनि विज्ञानके सम्बन्ध में तीन प्रकारके गणित मान प्रचलित हैं १. माधुर्य-मध्यम मान धैवत = ध, घ, घ, ध, ध,............धअ = धक = धैवत + घ....""घअ, धक = १. कोमल-मध्यमान-कोकिलको कूज = क = क + १ + क १ + .... ३. उत्क्षेपण-दूर पहुँचनेकी शक्ति-मध्यम मान-शान्त सरोवरकी लहर, प्रतिलव १० हाथ स्वर सिद्धान्तका एक अन्य पहलू नासिका छिद्रसे आने वाला श्वास-निश्वास भी है। दिनरातमें मनुष्यके श्वास निःश्वास इक्कीस हजार छ: सौ चलते हैं। और ढाई-ढाई घटीके अन्तरसे श्वास निःश्वासोंमें परिवर्तन होता है । एक बार दक्षिण नासिका छिद्रसे ढाई घटी तो दूसरी बार वाम नासिका छिद्रसे ढाई घटो श्वास चलता है। इस प्रकार एक हजार आठ सौ श्वास दक्षिण नासिका छिद्रसे और इतने ही श्वास वाम नासिका छिद्रसे निकलते हैं । दक्षिण नासिका छिद्रसे चलने वाले श्वासोंको पिंगला नाडी कहा जाता है। यह नाडी अतिउष्ण रहती है । यह सूर्यका स्थान है। योगशास्त्रमें मणिपुर चक्र सीधे नाभिके नीचे है और इसी चक्रपर सूर्यका अधिष्ठान माना गया है। इसी प्रकार वाम नासिका छिद्रसे निकलने वाले वायुकी नाडी इडा मानी जाती है। इसे चन्द्रनाडी भी कहा है। मनुष्यके सिरके वाम भागमें वाम नेत्रके ऊपरी भागमें चन्द्रका स्थान माना गया है। यहां अमृतका निर्माण होता है । यह अमृत एक प्रकारका द्रव पदार्थ है, जिससे मनुष्यकी जीवन शक्ति चलती है। जब वाम नासिका छिद्रसे श्वास अनाहत चक्र तक जा कर पुनः वापस लौट आता है तब तीसरी सुषुम्ना नाडी अर्थात् सूर्य और चन्द्र नाडीका सन्धि स्थान आता है। यहाँपर मंगल ग्रहकी स्थिति है। इन तीनों स्वरोंसे स्व शरीर एवं स्वके भविष्य परिज्ञानके साथ अन्यके शुभाशुभत्वको भी जाना जाता है । स्वरके सम्बन्धमें अन्य ग्रह गुरु, बुध, शुक्र, राहु और केतुका विचार भी किया है । योग क्रियानुसार मूलाधारपर बुध और राहुकी स्थिति है। स्वाधिष्ठानपर शुक्र, मणिपूरपर रवि, अनाहतपर मंगल, विशुद्धपर चन्द्र, आज्ञापर गुरु और सहस्रारपर शनिकी स्थिति है। स्वरको उचित क्रिया द्वारा नाडियोंके परिज्ञानसे विशेष-विशेष फलोंकी जानकारी होती है । बुध और राहु मोक्षमार्गकी ओर प्रवृत्त और जागृत करते हैं । शुक्रसे काम वासनाओंके उतार चढ़ाव, सांसारिक, अभ्युदय, विवाह, शिक्षा एवं प्रगतिकी जानकारी होती है। मणिपुर स्थित रवि सामाजिक और राजनीतिक प्रगतिकी सूचना देता है । अनाहत स्थित मंगलसे भूमि, गृह, अधिकार एवं पेशेकी सूचना मिलती है । विशुद्ध चक्रपर स्थित चन्द्र आयु, सुख दुख एवं पारिवारिक सुखका सूचक है । स्वर द्वारा ज्ञात गुरुसे विचार, तर्क, तात्विक-चिन्तन, व्यक्तित्व एवं जीवनमें घटित होनेवाले महत्वपूर्ण अभ्युदयोंकी सूचना प्राप्त होती है। शनि संघर्षका सूचक है । इस प्रकार अङ्गविद्याके अन्तर्गत स्वर-निमित्त का विचार किया है। लक्षण निमित्तकी गणना भी अङ्ग विद्यामेंकी गयी है। अङ्गों या रेखाओंमें रहने वाले स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र, मत्स्य आदि चिह्न व्यक्तिके स्वास्थ्य अभ्युदय एवं चरित्रके
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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