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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
अवलम्बन लिये बिना ग्रह फलका कथन करनेसे पद-पदपर भ्रान्ति होती है। अतएव ग्रह और राशियोंके सभी प्रकारके सम्बन्धोंको ध्यानमें रखते हुए किसी प्रमुख ग्रहकी विशेष स्थितिपर जोर दिया जाता है । दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशाओंके सम्बन्धों द्वारा फलादेशका कथन करना उचित होता है ।
दर्शनावरणीय कर्मके क्षयोपशमादिका प्रतीक बुध है। इस ग्रह द्वारा बुध सम्बन्धी चांचल्य, वाक्-चातुर्य, नेत्रज्योति, आनन्द, उत्साह, विश्वास, अहंकार आदि बातोंका विचार किया जाता है। साधारणतः यह आध्यात्मिक शक्तिका प्रतीक है। इसके द्वारा आन्तरिक प्रेरणा, सहेतुक निर्णयात्मक बुद्धि, वस्तु परीक्षण शक्ति एवं समझदारी आदिका विश्लेषण किया जाता है । इस प्रतीकमें विशेषता यह रहती है कि गम्भीरता पूर्वक किये गये विचारोंका विश्लेषण बड़ी खूबीसे इसके द्वारा किया जा सकता है।
___अनात्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षा गुरु और बुध इन दोनों प्रतीकों द्वारा (ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मोके क्षयोपशमसे उत्पन्न मिश्रित) स्कूलीय शिक्षा, कॉलेज शिक्षण, वैज्ञानिक प्रगति, साहित्यिक शक्ति, लेखन क्षमता, प्रकाशन क्षमता, धातुओंके परखनेकी बुद्धि, खण्डन-मण्डन शक्ति, चित्र और संगीत कला आदिका विचार किया जाता है । शारीरिक दृष्टिकोणसे इस प्रतीक द्वारा मस्तिष्क, स्नायु क्रिया, जिह्वा, श्रवणशक्ति, ज्ञानेन्द्रियोंकी अन्तरंग और बाह्यक्षमता आदिका विश्लेषण विवेचन किया जाता है ।
वेदनीय कर्मोदयका प्रतीक शुक्र है । शुक्रकी शुभ दशा साता वेदनीयकी सूचक है और अशुभ दशा असाता वेदनीय की। यह आन्तरिक व्यक्तित्वका भी प्रतीक है। सूक्ष्म मानव चेतनाओंको विधेय क्रियाओंका प्रतिनिधित्व भी इसके द्वारा होता है । प्राणीको भोगशक्तिका परिज्ञान भी शुक्रसे प्राप्त किया जाता है। अनात्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे सुन्दर वस्तुएँ, आभूषण, आनन्दोत्पादक पदार्थ, सजावटकी वस्तुएं एवं कलात्मक सम्बन्धी सामग्रीका विचार भी शुक्रसे होता है । आत्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे इसका सुन्दर वस्तुओंके प्रति आसक्ति, स्नेह, सौन्दर्यज्ञान, आराम, आनन्द, स्वच्छता, कार्यक्षमता, परखबुद्धि आदिपर इसका प्रभाव पड़ता है ।
शारीरिक दृष्टि से गला, गुर्दा, जननेन्द्रिय, आकृति, वर्ण, केश, शरीर संचालित करनेवाले अंग-प्रत्यंग आदिपर प्रभाव पड़ता है ।
शुक्र और गुरुकी दशा एवं अन्तर्दशाके सम्बन्धसे आजीविकाका विश्लेषण भी किया . जाता है । ज्ञानावरणीय और अन्तराय कर्मके क्षयोपशमके साथ सातावेदनीयका उदय प्रतीक रूपमें गुरु, मंगल और शुक्रके सम्बन्धों द्वारा, अवगत किया जाता है । जो विचारक इन सम्बन्धोंका जितनी सूक्ष्मताके साथ विभिन्न दृष्टियोंसे विचार कर सकता है, वह फल कथनमें उतना ही सफल माना जाता है ।
अन्तराय कर्मके क्षयोपशमको मंगलकी स्थितियों द्वारा अवगत किया जाता है । यह मानव जातिके कल्याणका प्रतीक है, और हे विभिन्न प्रकारको विपत्तियों और बाधाओंका सूचक । यों इसे बाह्य व्यक्तित्वके मध्यम रूपका व्यञ्जक माना है। यह इन्द्रिय ज्ञान और आनन्देच्छाका प्रतिनिधित्व करता है । जितने भी उत्तेजक और संवेदना जन्य आवेग है, उनका