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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
१. ग्रह-भ्रमणका केन्द्र
जैनाचार्योंने ग्रह भ्रमणका केन्द्र सुमेरु पर्वतको माना है, जबकि अन्यत्र ध्रुव देश या निरक्षको केन्द्र माना है। जहाँ वैदिक आचार्यों द्वारा सम्पूर्ण गणित और फलित ध्रुव केन्द्रके आधार पर प्रतिष्ठित है, वहां जैनाचार्योंका ग्रह गणित सुमेरु केन्द्र के आधार पर स्थित है। ग्रह नित्य गतिशील होते हुए मेरुकी प्रदक्षिणा करते हैं। ग्रहोंकी गति द्वारा ही कालकी स्थिति मानी जाती है। जैन मान्यताके अनुसार इस जम्बू द्वीपमें दो सूर्य और दो चन्द्रमा माने गये हैं। एक सूर्य जम्बू द्वीपकी पूरी प्रदक्षिणा दो अहोरात्रमें करता है । सूर्य प्रदक्षिणाकी गति उत्तरायण और दक्षिणायन इन दो भागोंमें विभक्त है और इनकी वीथियाँगमन मार्ग १८३ से कुछ अधिक है, जो सुमेरुकी प्रदक्षिणाके रूपमें गोल, किन्तु बाहरकी ओर फैलते हुए हैं। इन मार्गोंकी चौड़ाई ४६ योजन है, तथा एक मार्ग से दूसरे मार्गका अन्तर दो योजन बतलाया गया है। इस प्रकार कुल मार्गोंकी चौड़ाई और अन्तरालोंका प्रमाण ५१० योजन है, जो कि ज्योतिषशास्त्रको परिभाषामें चार क्षेत्र कहलाता है । ५१० योजन में से १८० योजन चार क्षेत्र जम्बू द्वीपमें और अवशेष ३३० योजन लवण समुद्र में हैं । सूर्य एक मार्गको लगभग दो दिनमें पूरा करता है, जिससे ३६६ दिन या एक वर्ष उसे पूरा करने में लगता है।
___ सूर्य जब जम्बूद्वीपके अन्तिम आभ्यन्तर मार्गसे बाहरकी ओर निकलता हुआ लवण समुद्रकी ओर जाता है, तब बाह्य लवण समुद्रके अन्तिम मार्ग पर चलने तकके कालको दक्षिणायन और जब सूर्य लवण समुद्रके बाह्य अन्तिम मार्गसे भ्रमण करता हुआ आभ्यन्तर जम्बूद्वीपकी ओर आता है, उसे उत्तरायण कहते हैं। इस प्रकार उत्तरायण और दक्षिणायन वर्षमान, योजनात्मिका गति एवं भ्रमण मार्गोंकी स्थिति सुमेरु के आधार पर ही वर्णित है।
___ इतना ही नहीं 'विषुव' का विचार भी सुमेरु के अनुसार ही बतलाया गया है । यहाँ यह स्मरणीय है कि 'त्रिलोकसार' और 'जम्बूद्वीपपण्णत्ति' में 'विषुव' का विचार उक्त केन्द्रानुसार ही किया गया है। यहाँ इस विचारको स्पष्ट करनेके लिये नाक्षत्र, चान्द्र, सावन और सौर मानोंका प्रतिपादन किया जाता है। जैन चिन्तकोंने पञ्चवर्षात्मक युगका मान श्रावण कृष्णा प्रतिपदासे माना है।
एक नाक्षत्र वर्ष = ३२७१३ दिन एक चान्द्र वर्ष = ३५४१३ दिन एक सावन वर्ष = ३६० दिन
एक सौर वर्ष = ३६६ दिन अधिक मास सहित एक चान्द्रवर्ष = ३८३ दिन २१६६ मु० ।
१-२. तत्त्वार्थसूत्र, ४१३ ३. वही ४।१४ ४. तिलोयपण्णत्ति ७।११७ ५. सावण बहुल पडिवये-सूरप्रज्ञप्ति