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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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मूल नक्षत्र गणनासे आता है, अतएव यह तिथि अग्राह्य । उत्तरपुराणकी मान्यतानुसार जन्म दिन कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी है, इस दिन चित्रा नक्षत्रका अस्तित्व रहता है । क्योंकि कार्तिकी पूर्णिमाको कृत्तिका और आश्विनी पूर्णिमाको अश्विनी नक्षत्र आता है । आश्विनी पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमासे गणना करनेपर कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीको चित्रा नक्षत्र आ जाता है । दूसरी बात यह भी है कि जो गर्भ नक्षत्र होता है, वही जन्म नक्षत्र भी आता है । अतः यह पहले ही लिखा जा चुका है कि गर्भकी परिपक्वता दस नाक्षत्र मासोंमें होती है । ये दस नाक्षत्रमास नौ सौर मासके तुल्य होते । चान्द्रमासकी गणना के अनुसार गर्भकी परिपक्वताका निश्चय नहीं किया जा सकता है । अतएव भगवान् पद्मप्रभ स्वामीका जन्मकल्याणक कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीको सम्पन्न हुआ ही मानना युक्ति संगत है ।
कवि वृन्दावनने कार्त्तिक शुक्ला एकादशीका निर्देश किया है, यह तिथि भी अशुद्ध है । क्योंकि गणनानुसार चित्रा नक्षत्र इन तिथि को नहीं आता है ।
छठें तीर्थंकरका तपकल्याणक तिलोयपण्णत्ति में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीके' दिन अपराह्नकालमें चित्रा नक्षत्र के रहते हुए बतलाया है । उत्तरपुराण में भी इसी तिथि और नक्षत्रका उल्लेख है । वृदावनने कार्त्तिक शुक्ला त्रयोदशी और मनरंगने कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी तिथि बतलायी है । गणना द्वारा कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी तिथि ही तपकल्याणककी तिथि है । कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी अशुद्ध है ।
पद्मप्रभ स्वामीको कैवल्यकी प्राप्ति तिलोयपण्णत्ति में वैशाख शुक्ला दशमीके' अपराह्न - कालमें चित्रा नक्षत्रके रहते हुए बतायी गयी है । उत्तरपुराणके अनुसार इन्हें कैवल्यलाभ चैत्रशुक्ला पूर्णिमा - चैत्री पूर्णिमाके मध्याह्न में हुआ है। इस दिन भी चित्रा नक्षत्र था । कवि वृन्दावन और मनरंगने भी चैत्री पूर्णिमा ही कैवल्यलाभकी तिथि मानी है । ज्योतिष गणना द्वारा विचार करनेपर तिलोयपण्णत्ति के अनुसार वैशाखशुक्ला दशमीको चित्रा नक्षत्र नहीं आता; यह नक्षत्र तो वैशाखशुक्ला त्रयोदशीको आता है तथा इस तिथिको पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रकी स्थिति आती है । अतः यह तिथि गणना के अनुसार अशुद्ध है । उत्तरपुराणकी मान्यता गणनासे शुद्ध सिद्ध होती है; क्योंकि चैत्री पूर्णिमाको नियमतः चित्रा नक्षत्र रहता है । अतएव छठवें तीर्थंङ्करकी कैवल्य - लाभ - तिथि चैत्री पूर्णिमा है ।
१. चित्तासु किण्हतेरसि अवरण्हे कत्तियस्स णिक्कतो |
पउमप्पहो जिणिदो तदिए खवणे मणोहरुज्जाणे ॥ - तिलोय० ४-६४९
२. कार्तिके शुक्लपक्षस्य त्रयोदश्यपराह्नगः ।
चित्रायां भूभुजां सार्द्ध सहस्रेणाहितादरः ॥ - उत्तर० ५२-५२
३. सुकलतेरसकातिक भावनी । तप धरयो वन षष्टम पावनी ॥ - वृन्दावन चौबीसी विधान ४. वइसाहसुक्कदसमीचेत्तारिक्खे मणोहरुज्जाणे ।
अवरह्णे उप्पण्णं पउमप्पह जिनवरिदस्स ॥ - तिलोय० ४-६८३