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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान · इन्हीं सुमतिनाथ भगवान्के निर्वाण या मोक्ष-कल्याणकका वर्णन करते हुए तिलोयपण्णत्तिमें बताया गया है कि चैत्रशुक्ला दशमीके दिन पूर्वाह्नकालमें मघा नक्षत्रके रहते हुए सम्मेद शिखरसे एक सहस्र मुनियोंके साथ निर्वाणको प्राप्त हुए । उतरपुराणमें चैत्रशुक्ला एकादशीके दिन मघा नक्षत्रमें अपराह्नकाल में सुमतिनाथ स्वामीने निर्वाण लाभ किया । वृन्दावन और मनरंगने भी चैत्रशुक्ला एकादशी तिथि हो निर्वाण तिथि बतलायो है ! ज्योतिषकी प्रक्रिया द्वारा ऊहापोह करनेपर चैत्रशुक्ला एकादशीको ही मधा नक्षत्र आता है, दशमीको नहीं । अतः चैत्री पूर्णिमाको चित्रा नक्षत्र रहेगा, अतएव मघा नक्षत्र एकादशीको ही रहना चाहिए। 'तिलोयपण्णत्ति' का 'चेत्तस्स सुक्कदशमो' के स्थान में 'चेत्तस्रा शुक्ल एकादसी, पाठ होना चाहिए। यहाँ मघा नक्षगका उल्लेख है ही, अतएव पाठान्तर शुद्ध कर देनेपर गड़बडी दूर हो जाती है, जिससे चैत्र शुक्ला एकादशी तिथि सुमतिनाथ भगवान्के निर्वाण कल्याणकी तिथि गणना द्वारा सिद्ध होती है।
षष्ठ तीर्थंकर पद्मप्रभका गर्भकल्याणक उत्तरपुराणमें माघ कृष्ण षष्ठीको माना गया है । इस दिन चित्रा नक्षत्र था । कवि वृन्दावनने माघ कृष्णा षष्ठी तथा मनरंगने भी इसी तिथिको छठवें तीर्थंकरको गर्भकल्याणक तिथि बताया है। ज्योतिषकी पद्धति द्वारा विचार करनेपर भी यह तिथि शुद्ध प्रतीत होती है। क्योंकि माघ कृष्णा षष्ठीको चित्रा नक्षत्र आ जाता है । पौषी पूर्णिमाको पुष्य नक्षत्र आता है, इससे आगे गणना करनेपर माघ कृष्णा षष्ठीको चित्रा नक्षत्रकी स्थिति घटित हो जाती है ।
पद्मप्रभ स्वामीका जन्मकल्याणक तिलोयपण्णत्ति के अनुसार श्रावणशुक्ला एकादशी' मघा नक्षत्र में माना गया है । उत्तरपुराणमें कात्तिक कृष्णा त्रयोदशीको' चित्रा नक्षत्रमें जन्म कल्याणक बतलाया गया है। वृन्दावनने पद्भप्रभ स्वामीकी जन्मतिथि कात्तिक शुक्ला त्रयोदशी और मनरंगने कात्तिक कृष्णा त्रयोदशी मानी है ।
ज्योतिषकी पद्धति द्वारा विचार करनेपर ज्ञात होता है कि तिलोयपण्णत्ति द्वारा प्रतिपादित तिथि अशुद्ध है; क्योंकि श्रावण शुक्ला एकादशीको मघा नक्षत्र नहीं पड़ता है, उस दिन
१. चेत्तस्स सुक्कदसमीपुव्वण्हे जम्मभम्म सम्मंदे ।
दससयरिसिसंजुत्तो सुमइस्साभी समोक्खगदो।।-तिलोय० ४.११८९ २. एकादश्यां सिते चैत्रे मघायामपरागः ।
अमरैरन्त्यकल्याणमवाप सुमतीश्वरः ॥-उत्तर० ५१.८५ ३. प्रभाते माघकृष्णायां षष्ठयां चित्रेन्दुसंगमे ।-उत्तर० ५२.१९ ४. मेघप्पहेण सुमई साकेदपुरम्मि मंगलाए य ।
सावणसुक्केदारसिदिवसम्मि मघासु संजणिदो ॥-तिलोय० ४५३० ५. कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां त्वष्टयोगेऽपराजितम् । ____ कात्तिके मास्यसूतैषा रक्ताम्भोजदलच्छविम् ।।-उत्तर० ५२.१ ६. सुकुलकातिकतेरसकों जये । त्रिजगजीव सु आनन्दकों लये।।--वृन्दावन चौबीसी विधान ७, भली त्रयोदश्यां कातिक महीना प्राक परवको । सत्यार्थयज्ञ