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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वा ङ्मयका अवदान
अजितनाथका गर्भकल्याणक ज्येष्ठ मासकी अमावस्या तिथिमें रोहिणी नक्षत्र के रहनेपर माना गया है। उत्तरपुराण तथा अन्य पुराण ग्रन्थोंकी यही मान्यता है । ज्योतिषकी दृष्टिसे ऊहापोह करनेपर यह तिथि शुद्ध है । क्योंकि इस महीनेकी अमावास्याको चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्रके साथ रहता है तथा पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होती है । रोहिणीसे ज्येष्ठा पन्द्रहवाँ नक्षत्र और अमावास्या से पूर्णिमा सोलहवीं तिथि आती है । पर ज्योतिष में तिथिका मध्यम मान ५४ घटी और नक्षत्रका ६० घटी होता है, जिससे इस महीनेकी ज्येष्ठ कृष्णा नवमी दो तिथियाँ हुई हैं । अतः अमावास्याको रोहिणीका अस्तित्व रात्रि पर्यन्त है ।
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अजितनाथ स्वामी की जन्मतिथि माघ शुक्ला दशमी रोहिणी नक्षत्र युक्त मानी गयी है । तिलोय पण्णत्ति, उत्तरपुराण आदि सभी ग्रन्थोंका यही मत है । यह तिथि भी ज्योतिष के अनुसार शुद्ध है । क्योंकि गणितके अनुसार माघी पूर्णिमाको सूर्योदय के समय आश्लेषा नक्षत्र ही था; किन्तु चन्द्रमाके उदय होनेपर मघा नक्षत्र आ गया था । रोहिणी के उत्तरवर्ती मृगशिर नक्षत्रसे गणना करने पर श्लेषा पाँचवाँ नक्षत्र आता है तथा एकादशीसे गिननेपर पूर्णिमा भी पाँचवीं तिथि है । अतएव नक्षत्र और तिथिका समन्वय हो जानेसे उक्त जन्म तिथि शुद्ध है । हिन्दी कवि मनरंगलालने अजितनाथ स्वामीका जन्मकल्याणक माघकृष्णा दशमीको माना है, पर यह अशुद्ध मान्यता है ।
अजितनाथ भगवान्का तपकल्याण माघ शुक्ला नवमी रोहिणी नक्षत्रमें हुआ था । दीक्षाकाल अपराह्न का समय बतलाया गया है । उत्तरपुराण की भी मान्यता यही है । ज्योतिषकी विचारसारणि द्वारा यह तिथि सिद्ध हो जाती है । क्योंकि पौषकी पूर्णिमाको पुष्य नक्षत्र था । इस नक्षत्रसे गणना करनेपर नवमीके दिन रोहिणी नक्षत्र आ जाता है । हिन्दी में कवि मनरंगने माघकृष्णा" दशमी तथा वृन्दावनने माघशुक्ला दशमी दीक्षाकी तिथियाँ बतलाई हैं, जो अशुद्ध हैं ।
अजितनाथ भगवान्को केवलज्ञानको उत्पत्ति तिलोयपण्णत्तमें पौष शुक्ला चतुर्दशीके
१. ज्येष्ठे मासि कलाशेषशशिरोहिण्युपागमे ।
मुहूर्त्ताद्ब्रह्मणः पूर्वं दर निद्राविलेक्षणाम् ॥ - उत्तरपुराण ४८-२१
२. माघस्स सुक्कपषखे रोहिणिरिक्खम्मि दसमि दिवसम्म ।
साकेदे अजियजिणो जादो जियसत्तु विजयादि । - तिलो० ४-५२७
३. माघस्स सुक्कणवमी अवरण्हे रोहिणीसु अजियजिणो ।
रम्मे सहेदुगवणे अपयत्तम्मि णिक्कंतो ॥। ४, ६४५ शि०
४. माघे मासे सिते पक्षे रोहिण्यां नवमी दिने ।
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सहेतुके वने सप्तपर्णद्रुमसमीपगः ॥ उत्तरपुराण पर्व ४८, श्लो० ३८ ता दिन दिक्षा लेत ।
५. माघबदी दसमी कही,
अजित प्रभु को अर्घ ले,
पूजौं भाव समेत । – मनरंग सत्यार्थयज्ञ
६. माघ सुदी दशमी तपद्वारा । भव तन भोग अनित्य विचारा । - वृन्दावनकृत चौबीसी विधान
७. पुस्सस्स सुक्कचोद्दसि अवरले रोहिणिम्मि णक्खत्ते ।
अजियजिणे उप्पण्णं अनंतणाणं सहेदुगम्मि वणे ।। - ति० ४-६८०