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प्रतिपदाका उदय उत्तराफाल्गुनीमें हुआ था । लेनेपर नवमी तिथिको उत्तराषाढ़ा नक्षत्र आ भी सही है ।
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अब यहाँसे नक्षत्र और तिथियोंकी गणना कर जाता है, अतः ज्योतिषकी दृष्टिसे यह तिथि
भगवान् आदिनाथने चैत्रकृष्णा नवमीके दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें दीक्षा ग्रहण की थी । यह तिथि भगवान् के तपकल्याणक की है । तिलोयपण्णत्ति, आदिपुराण, पुराणसारसंग्रह आदि ग्रन्थोंमें इसी तिथिका निरूपण किया गया है। ज्योतिषकी दृष्टिसे भी यह तिथि शुद्ध है । भगवान् ने दीक्षा दोपहरके एक बजे ग्रहण की थी। क्योंकि इस दिन दो बजेके उपरान्त श्रवण नक्षत्रका आरंभ हो जाता है। अपराह्नकाल इनकी दीक्षाका समय नहीं हो सकता है । अतः नवमी तिथि भी दो बजेके उपरान्त समाप्त हो जाती है । तिलोयपण्णत्ति में तीसरे प्रहरका निरूपण किया गया है; पर यह गणितसे समय एक बजेका ही आता है ।
भगवान् ऋषभदेवको केवलज्ञानकी उत्पत्ति फाल्गुन कृष्णा एकादशी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पूर्वा कालमें पुरिमताल नगर में हुई थी । उपलब्ध सभी दि० जैन साहित्य इस तिथिपर एक मत हैं । ज्योतिष की दृष्टिसे परीक्षा करनेपर प्रतीत होता है कि माघी पूर्णिमाके दिन मघा नक्षत्र था, इस तिथिको चन्द्रमाके उदयके समय मघा अवश्य था, किन्तु चन्द्रमाके अस्तकाल में पूर्वाफाल्गुनी आ गया था तथा फाल्गुन कृष्णा प्रतिपदाका उदय पूर्वाफाल्गुनीमें हुआ था । इस क्रमसे प्रतिपदासे एकादशी तक गणना करनेपर फाल्गुन कृष्णा एकादशीको उत्तराषाढ़ा नक्षत्र आ जाता है । पूर्वाह्न समयका उल्लेख भी उचित है, क्योंकि तिथि, नक्षत्रका योग पूर्वाह्न में ही मिलता है । अतएव ज्योतिष की दृष्टिसे यह तिथि शुद्ध है ।
आदिनाथस्वामीको निर्वाणतिथि माघकृष्णा चतुर्दशी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र युक्त मानी गयी है तथा निर्वाणकाल पूर्वाह्नकाल है । आदिपुराण प्रभृति पुराणोंकी भी यही मान्यता है | विचार करनेपर ज्ञात होता है कि पौष मास की पूर्णिमाको चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में था । पुष्यसे आगेवाले श्लेषा नक्षत्र से गणना करनेपर उत्तराषाढ़ा तेरहवाँ नक्षत्र हुआ और प्रतिपदा से चतुर्दशी की संख्या १४ हुई । अत: इस हिसाब से त्रयोदशीको ही उत्तराषाढ़ा पड़ जाता है । पर गणितसे उक्त स्थिति में माघकृष्णा षष्ठी तिथिका क्षय है, अतएव उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें चतुर्दशी आ जाती है । इस प्रकार प्रचलित मान्यताके अनुसार भगवान् ऋषभदेवकी पञ्चकल्याणक तिथियाँ ज्योतिष की दृष्टिसे शुद्ध हैं ।
१. चेत्तासिदणवमीए तदिए पहरम्मि उत्तरासाढ़े । सिद्धकणे उसहो' उववासे छट्ठमम्मि णिक्कंतो ॥
२. फग्गुणकिण्हेयारसपुव्वण्हे पुरिमतालणय रम्मि |
उत्तरसाढे उसहे उप्पण्णं केवलं गाणं ॥ - तिलोयपण्णत्ति ४.६७९
३. माघस्स किण्हचौद्दसिपुव्वण्हे गिययजम्मणक्खते ।
अट्ठावयम्मि सहो आनुदेण समं गओ गोमि । तिलोयणासी ४.११५ २१