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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
मातवीं आठवीं शताब्दीका है । आराके श्री आदिनाथ जिनालय, धनुपुरामें श्यामवर्णकी प्रतिमाके नीचे धर्मचक्र अंकित है । जैन पुराणोंमें बताया गया है कि प्रत्येक तीर्थकरके समवशरणके दरवाजेपर सर्वतोभद्र यक्ष धर्मचक्र अपने सिरपर लिए खड़ा रहता था। अतः यह निश्चित है कि धर्मचक्र जैन संस्कृतिका प्रतीक है ।
___ अतएव वर्तमान राजमुद्राका जैन संस्कृतिसे सम्बन्ध है । बौद्ध संस्कृतिसे खींचतान कर कोई भले ही सम्बन्ध जोड़नेका उपक्रम करे, किन्तु तथ्य यही है कि सम्राट् सम्प्रतिने इस मुद्राको स्तम्भपर अंकित कराया था। गणतन्त्र भारतने इस मुद्राको अशोक मुद्राके मामसे स्वीकार किया है; पर वास्तविक इतिहासको अवगत कर इसे जैनमान्यता मिलनी चाहिये ।