________________
१३२
भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान प्रपौत्रश्चन्द्रगुप्तस्य बिन्दुसारस्य नप्तृकः ।
एषोऽशोकश्रियः सूनुरन्धो याचति काकणिम् ॥ इस श्लोकको सुनकर अशोकको बड़ा आश्चर्य हुआ और पर्देकी ओटसे निकलकर अन्धे गायकका पूरा परिचय पूछा। जब राजाको कुणालका पूरा वृत्तान्त अवगत हो गया तो उसने कहा । पुत्र ! क्या चाहता है ? जो माँगेगा. दूंगा।
कुणाल-पिताजी ! मैं एक काकिनी चाहता हूँ। मंत्रीने राजाको समझाया कि राजपुत्र काकिनीसे राज्यकी याचना करते हैं । अशोकने पुनः कुणालसे कहा कि अन्धे होकर तुम राज्यसे क्या करोगे ? अन्धेको राज-गद्दी कैसे दी जा सकती है ?
कुणाल-पिताजी ! आपकी कृपासे मेरे पुत्र उत्पन्न हुआ है, आप उसीका राज्याभिषेक कीजिये।
___ अशोक-तुम्हारे पुत्र कब हुआ है ? कुणाल हाथ जोड़कर कहने लगा-सम्प्रति अर्थात् अभी। यह सुनकर अशोकने बालकको धूमधामके साथ पाटलीपुत्रमें बुलवाया और उसका जन्मोत्सव मनाया । बालकका नाम कुणालके उच्चारणपर सम्प्रति ही रख दिया। सम्प्रतिका जन्म ई०पूर्व० ३०४ पौषमास-जनवरीमें हुआ था। मगधमें लाये जानेपर इसकी अवस्था १० दिनकी थी। सम्प्रतिका राज्याभिषेक ई० पू० २८९ में १५ वर्षको अवस्थामें अक्षयतृतीयाके दिन हुआ था। ऐतिहासिक मतभेद
विष्णुपुराणमें अशोकका उत्तराधिकारी सुयश को बताया है। राजतरंगिणीके अनुसार काश्मीर प्रांतपर अशोकका पुत्र वीरसेन गान्धारका शासक था। विष्णुपुराण और मत्स्यपुराणमें अशोकका पोता दशरथ बताया गया है। दशरथका नागार्जुन पहाड़ी (गयाके पास) की गुफा में एक दानसूचक अभिलेख मिला है, जिसकी लिपिके आधारपर विन्सेण्टस्मिथका अनुमान है कि यही अशोकके राज्यका उत्तराधिकारी था। जैकोबीने सम्प्रतिको कल्पित बताया है अथवा इनका अनुमान है कि पूर्वीय राज्यका दशरथ उत्तराधिकारी था और पश्चिमीय राज्यका सम्प्रति रहा होगा।
वायुपुराणमें कुणालका पुत्र बन्धुपालित और उसका उत्तराधिकारी इन्द्रपालित बताया गया है। जायसवाल यह निष्कर्ष निकालते हैं कि बन्धुपालित और इन्द्रपालित क्रमशः दशरथ
और सम्प्रतिके उपनाम थे तथा सम्प्रति दशरथका छोटा भाई और उत्तराधिकारी था। तारानाथ कुणालके पुत्रका नाम विगताशोक बतलाते हैं, संभवतः यह सम्प्रतिका उपनाम हो। अशोकके शिलालेखोंके आधार पर सम्प्रतिका उपनाम प्रियदर्शिन् भी बताया गया है । श्री गिरनारजीकी तलहटीमें सुदर्शन नामका तालाब है, उसके पुनरुद्धार सम्बन्धी शिलालेखका
१. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृ० ६१५ । २. अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ० १९२। ३. प्राचीन भारत, पृ० २१८ तथा प्राचीन राजवंश द्वितीय भाग, पृ० १३४ । ४. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृ० ६१६ ।