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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
चौहान वंशकी रानियोंने भी उस वंशके राजाओंके समान ही जैन धर्मकी सेवा की है । इस वंशका शासन वि० सं० की तेरहवीं शताब्दी में था । राजा कीर्तिपालकी पत्नी महिबल देवीका नाम प्रसिद्ध है । इस देवीने शान्तिनाथ भगवान्का उत्सव मनानेके लिए भूमिदान की थी । इसने धर्म प्रभावनाके लिए कई उत्सव भी किए थे ।
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इसी वंशमें होने वाले पृथ्वीराज द्वितीय और सोमेश्वरने अपनी महारानियोंकी प्रेरणासे बिजौलियाके मन्दिरको दानमें दिया था तथा मन्दिरके स्थायी प्रबन्धके लिए राज्यकी ओरसे वार्षिक चन्दा भी दिया जाता था ।
परमार वंशमें उल्लेख योग्य धारावंशकी पत्नीश्रृंगारदेवी हुई है । इस देवीने झालोनी के शान्तिनाथ मन्दिर के लिए पर्याप्त दान दिया था तथा धर्म प्रसारके लिए और भी अनेक कार्य किये थे । इस प्रकार जैन धर्मके विकास में पुरुषोंके समान जैन नारियोंने भी योगदान दिया है ।