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१२२ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
और इन वीरके दो पुत्र हुए-नेढ़ और विमल । नेढ़ अणहिलपुर पाटनके राज्य सिंहासनाधिपति गुर्जर देशके चौलुक्य महाराज भीमदेवका मन्त्री था। विमल अत्यन्त कार्यदक्ष, श्रवीर और उत्साही था। इसी कारण महाराज भीमदेवने उसको सेनापति नियत किया । विमलने भीमदेवकी आज्ञाके अनुसार अनेक संग्रामोंमें विजय प्राप्त की। यही कारण था कि महाराज भीमदेव उसपर सदैव प्रसन्न रहते थे। विमलने परमार घंघुरुको बड़ी ही बुद्धिमानीसे भीमदेवका अनुचर बनाया, जिससे भीमदेव उसपर और भी अधिक प्रसन्न हो गये ।
विमलने अपने उत्तरार्ध जीवनमें चन्द्रावती और अचलगढ़को अपना निवास स्थान बनाया और चन्द्रावतीमें धर्मघोष सूरिका चातुर्मास कराया और इनके उपदेशसे आबू पर्वतपर विमल बसहि नामक मन्दिर बनवाया । इस मन्दिरकी भूमिके खरीदने में अपार धन व्यय हुआ। विमल बसहि अपूर्व शिल्प कलाका उदाहरण है । यह संगमर्मर पाषाणसे बनाया गया है । गूढ मण्डप, नव चौकियां, रंगमण्डप तथा ५२ जिनालयादिसे सुशोभित है। मन्दिरकी प्रतिष्ठा विमलने वर्धमान सूरिके कर कमलों द्वारा वि० सं० १०८८ में करायी । विमल सेनापति अत्यन्त धर्मात्मा और धर्मप्रेमी था । उसने आबू पर्वतपर कलापूर्ण मन्दिरका निर्माण कर अक्षय यश प्राप्त किया है।
जैनधर्मका प्रचार और प्रसार करने वालोंमें वस्तुपाल और तेजपालका नाम भी आदरके साथ लिया जाता है । वस्तुपाल प्राग्वाटवंशी था । इस वंशमें चण्डप नामका प्रसिद्ध वीर हुआ जिसके पुत्रका नाम चण्डप्रसाद था । चण्डप्रसादके पुत्रका नाम सोम था जो सिद्धराज जयसिंहका सामन्त था । सोमने जैनधर्म स्वीकार कर लिया था। सोमका पुत्र अश्वराज हुआ और इस अश्वराजके तीन पुत्र हुए-मालदेव, वस्तुपाल और तेजपाल । वस्तुपालने यात्रा संघ निकाला था। इसकी ललिता देवी और बेजलदेवी नामकी दो धर्मपत्नियां थीं। ललिता देवीकी कुक्षिसे जयन्त सिंहका जन्म हुआ जो पिताके समान वीर और प्रतिभाशाली था ।
महामात्य तेजपालकी भी दो पत्नियां थीं-अनुपमदेवी और सुहडा देवी । अनुपम देवीकी कुक्षिसे महाप्रतापी, प्रतिभाशाली और उदार हृदय लड़सिंह नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। यह राज-कार्यमें भी निपुण था। यह पिताके साथ अथवा अकेला भी युद्ध, सन्धि, विग्रहादि कार्योमें भाग लेता था।
गुजरातकी राजधानी अणहिलपुर पाटनका उत्तराधिकार भीमदेव द्वितीयको प्राप्त हुआ। उस समय गुजरात में धोलकामें महामण्डलेश्वर सोलंकी अर्णोराजका पुत्र लवणप्रसाद राजा था और उसका पुत्र वीर धवल युवराज । ये दोनों भीमदेवके मुख्य सामन्त थे । महाराज भीमदेव इन पर बहुत प्रसन्न थे। इस कारण उन्होंने अपनी राज्य सीमाको बढ़ाने और सम्हालनेका कार्य लवणप्रसादको सौंपा और वीर धवलको अपना युवराज बनाया। इन्हीं वीर धवलके मन्त्री वस्तुपाल और तेजपाल थे। मंत्री वस्तुपाल और तेजपालने कई युद्ध किये और बुद्धिबलसे उनमें विजय प्राप्त की।
___ महामात्य वस्तुपाल और तेजपालने अनेक तीर्थ स्थानोंको यात्रा की और आबू पर्वतपर लूड़ बसहि नामक कलापूर्ण मन्दिर बनवाया । वस्तुपालके लघुभ्राता तेजपालने अपनी धर्मपत्नी अनुपम देवी और उसके गर्भसे उत्पन्न पुत्र लवण्य सिंहके कल्याणके लिए आबु पर्वतस्थ