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जैनधर्म के प्रभावक पुरुष एवं नारियाँ
इस परिवर्तनशील संसार में देश समाज राष्ट्र या धर्म के लिए जो अवि नश्वर कार्य कर जाते हैं, उनका नाम इतिहास में सदा अमर रहता है। जैन इतिहास में ऐसे अनेक व्यक्तियों के नाम मिलते हैं, जिन्होंने समाज और धर्म के उत्थान के महत्वपूर्ण कार्य किये हैं । इस निबन्ध में आत्म साधक या सरस्वती उपासक व्यक्तियों का उल्लेख न कर इतिहास मान्य ऐसे नर-नारियों का निर्देश प्रस्तुत किया जायगा, जिन्होंने अपने कार्यों से जैन शासन और जैन संघ को अपने जीवनकाल में पर्याप्त प्रेरणा और गति प्रदान की है । यह सार्वजनिक सत्य है कि त्यागी और समाजसेवी व्यक्तियोंके कार्य युग-युगान्तर तक जनमानसको प्रेरित करते रहते हैं । समाज, देश या राष्ट्र में निरही सेवामावी और कर्मठ व्यक्ति ही अपने प्रेरक कार्योंके कारण बड़े माने जाते हैं और ऐसे व्यक्तियोंके पावन चरित ही आनेवाली पीढ़ियोंके लिए उद्बोधक होते हैं ।
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जैन धर्मके प्रभावक पुरुष
जैन गणमान्य व्यक्तियों में सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त मौर्यका नाम आता है । इसने विशाल सेनाका संगठनकर विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की थी। इसके राज्यकी सीमा बंगाल सागरोपकूल से लेकर अरब समुद्र तक व्याप्त थी । वास्तविक में भारतवर्षका यही सर्वप्रथम ऐतिहासिक सम्राट् हुआ है । चन्द्रगुप्तने सम्राट् होने पर अपने परोपकारी चाणक्यको मंत्री पद दिया, पर चाणक्यने प्रधान मंत्रित्वका भार नन्दराजाके भूतपूर्व जैन धर्मानुयायी मंत्री राक्षस को सुपुर्द करने सलाह दी । चन्द्रगुप्तने राक्षसको प्रधान मंत्रित्वका भार सौंपा। प्रजा वत्सल चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य की सुव्यवस्था की । पाटलीपुत्रमें राजधानी रहने पर भी उज्जयिनी में भी अपनी उप राजधानी स्थापित की ।
मेगस्थनीजके उल्लेखानुसार चन्द्रगुप्त श्रमण गुरुओंकी उपासना आहारदान एवं प्राणहितके कार्यों में संलग्न रहता था। डॉ० जायसवालने लिखा है - " ये मौर्य महाराज बेदोंके कर्मShrish नहीं मानते थे और न ब्राह्मणोंकी जातिको अपनेसे ऊंचा समझते थे । भारतके ये व्रात्य अवैदिक क्षत्रिय सार्वकालिक साम्राज्य अक्षय धर्म विजय स्थापित करनेकी कामना वाले हुए
डॉ॰ जायसवालके उक्त कथनसे यह ध्वनित होता है कि वे मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्तको अवैदिक अर्थात् जैन मानते हैं । लूईस - राईस तथा महामहोपाध्याय आर० नरसिंहाचार्य ने चन्द्रगुप्त मौर्यको जैन स्वीकार किया है और उसकी दक्षिण यात्राको यथार्थ माना है । डॉ० फ्लोट और डॉ० वो० ए० स्मिथ ने भी इस बातको स्वीकार किया है कि चन्द्र गुप्त राज्यक
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१. मौर्य साम्राज्य के इतिहास की भूमिका
२. Mysore and Kurga from the inscription Page 2 - 10
३. Inscription of Shravana Beyola, Page 36-40
४. एपिग्राफिका इन्डिका, जिल्द ३, पृ० १७१ और इन्डियन, एन्टीक्वियरी जिल्द २१, पृ० १५६
५. अरली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, तृतीय संस्करण, पृ० ७५-७६