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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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चोकोर स्तम्भोंके ऊपर स्थित है । पूर्वकी तरफ सात वेदियाँ हैं और शेष सभी ओर आठ-आठ वेदियाँ हैं । प्रत्येक वेदी ५ फीट ८ इंचके वर्गकी है ।
इस मंदिर में ३१ कमरे जो बाहर की ओर खुलते हैं, उनमें ३१ वेदियाँ और चार कमरे जो भीतरकी ओर खुलते हैं, उनमें चार वेदियाँ हैं, इस प्रकार इस मंदिरमें कुल ३५ वेदियाँ हैं । वेदियों में चित्रकारी की गई है, दरवाजोंपर भी सुन्दर कारीगरी है । प्रत्येक दरवाजेके दोनों ओर चार-चार बड़ी मूर्तियाँ हैं तथा दरवाजेके ऊपर तीन-तीन बड़ी पद्मासन मूर्तियाँ हैं । खम्भे चौकोर हैं, ये ऊपर और नीचे चौड़े हैं, इनके ऊपर चार चार ब्रेकिटें हैं, जो छतको संभाले हुए हैं । इन खम्भोंकी ऊँचाई ७ फीट ५ इंच है । दक्षिण - पूर्वके कोनेके कमरेकी वेदीपर तीन ऊंची खड़ी मूर्तियाँ विराजमान हैं । इनमें बीचकी मूर्ति १२ फीट, ६ इंच ऊंची और ३ फीट ८ इंच चौड़ी है । यह जमीनमें नीचे धँसी हुई है । शेष दोनों बगल वाली मूत्तियाँ ९ फीट ९ इंच ऊंची और २ फीट ४ इंच चौड़ी हैं । मंदिर भूमिसात् है, इसकी छत गिर गई है, बरामदेको छतके कुछ किनारेके हिस्से लटक रहे हैं। बाहरमें तीन यक्षिणियोंकी मूर्तियां भग्न मूर्तियों के साथ पड़ी हुई हैं, ये भग्न सभी मूर्तियाँ दिगम्बर सम्प्रदायकी हैं । एक स्तम्भपर तीन पंक्तियोंका लेख उत्कीर्ण है
प्रथम पंक्ति - सं० ११५२ वैशाख सुदी पञ्चम्यां द्वितीय पंक्ति - श्रीकाष्ठासंघ महाचार्यवयं श्रीदेव तृतीय पंक्ति - सेनपादुका युगलम्
नीचे के हिस्से में एक भग्न मूर्ति है, जिसपर श्रीदेव लिखा है । एक खड्गासन मूर्तिके नीचे निम्न लेख उत्कीर्ण है, इस लेखमें संवत् और तिथिका जिक्र नहीं है
श्रीमान वसु प्रतिमा
षु श्रोष्ठनो का श्रेठिनी लक्ष्मीः
अर्थात् इस लेखमें बताये गये 'वसु' वासुपूज्य भगवान् हैं, जो कि १२ वें तीर्थंकर हैं । दक्षिणकी तरफ १६ इंचके तोरणपर ५९ पंक्तियोंका लम्बा लेख उत्कीर्ण है । यह संवत् १९४५ का है । इसका प्रारम्भ “ ॐनमो वीतरागाय " से हुआ है। श्री शान्तिनाथजिन और श्रीमज्जिनाधिपति आदि नाम भी आये हैं तथा इसमें लाडवागड गणके देवसेन, कुलभूषण, दुर्लभसेन, अंबरसेन और शान्तिषेण इन पाँच आचार्योंके नाम भी पाये जाते हैं ।