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जैन इतिहासकी प्राचीर पर कुछ भूले-बिसरे प्रसंग
सुहोनिया या सुधीनपुर प्राचीन भारत में सुहोनिया जैन संस्कृतिका केन्द्र रहा है । यह ग्वालियरसे २४ मील उत्तरकी ओर तथा कुतवरसे १४ मील उत्तर-पूर्व अहसिन नदीके उत्तरी तटपर स्थित है । कहा जाता है कि पहले यह नगर १२ कोसके विस्तारमें था और इसके चार फाटक थे। यहाँसे एक कोसकी दूरीपर विलौनी नामक गाँव में दो खम्भे अभी तक खड़े मिलते हैं; पश्चिममें एक कोस दूरपर वौरीपुरा नामक गाँवमें एक दरवाजेका अंश अभी तक वर्तमान है । दो कोस पूर्व पुरवासमें और दो कोस दक्षिण बाढ़ामें अभी तक दरवाजोंके ध्वंसावशेष स्थित हैं। इन सीमा बिन्दुओंकी दूरी नापनेपर सुहोनियाका प्राचीन विस्तार बिल्कुल ठीक मालूम होता है ।
ग्वालियरके संस्थापक सूरजसेनके पूर्वजों द्वारा आजसे दो हजार वर्ष पूर्व इस नगरका निर्माण किया गया था। कहते हैं कि राजा सूरजसेनको कुष्ठ रोग हो गया था, उसने इससे मुक्ति पानेके लिए अनेक उपाय किये, पर भयानक रोगका शमन नहीं हुआ। अचानक राजाने एक दिन अम्बिका देवीके पार्श्वमें स्थित तालाबमें स्नान किया, जिससे वह उस रोगसे छुटकारा पा गया । इस स्मृतिको सदा कायम रखने के लिए उसने अपना नाम शोधनपाल या सुद्धनपाल रखा तथा इस नगरका नाम सुद्धनपुर या सुधियानपुर रखा; आगे चलकर यही नगर सुहानिया, सिहोनिया या सुधानिया नामोंसे पुकारा जाने लगा। कोकनपुर मठका बड़ा मन्दिर जो ग्वालियरके किलेसे दिखलायी देता है, उसकी रानी कोकनवतीके द्वारा बनवाया गया था। इस मन्दिरका निर्माण काल ई० २७५ है, इस रानीने एक विशाल जैन मन्दिर भी सुहानियाके पास बनवाया था। इसका धर्मके ऊपर अटल विश्वास था । सुहोनियामें उस समय सभी सम्प्रदाय-वालोंके बड़े-बड़े मन्दिर थे। जैन यक्षिणी देवियोंके मन्दिरोंका पृथक् निर्माण भी किया गया था। १० वीं शताब्दी तक ब्राह्मण मतके साथ जैनधर्मका प्रसार इस नगरमे होता रहा । ४ थी और ५ वीं सदोमें सिहोनियाँके आस-पास ११ जैन मंदिर थे; जिनका निर्माण जैसवाल जैनोंने किया था।
सन् ११६५-११७५ के बीच में कन्नौजके राजा अजयचन्दने इस नगरपर आक्रमण किया । इस समय इस नगरका शासन एक राव ठाकुरके अधीन था जो कि ग्वालियरके अन्तर्गत था। इस युद्ध में राव ठाकुरको पराजय हुई, और कन्नौजका शासन स्थापित हो गया । लेकिन सुहानियाके दुर्भाग्यका उदय हो चुका था, उसकी उन्नति और श्री सदाके लिये रूठ गयी थी; फलतः कन्नौजके शासक भी वहाँ अधिक दिनतक नहीं रह सके तथा यह सुन्दर नगर उजड़ने लगा। इसका शासन पुनः ग्वालियरके अन्तर्गत पहुँचा, पर इसके अधिकांश मंदिर मठ धराशायी होने लगे। मुसलमान बादशाहोंको सेनाका प्रवेश भी इधर हुआ, जिसने सुन्दर मूत्तियोंको भग्न किया और मंदिरोंको धूलिसात् कर दिया ।
अभी हालमें इस नगरमें भूगर्भसे श्री शांतिनाथ भगवान्की एक विशालकाय १६ फुट