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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
किया ।' विद्युच्चोरने अपने पाँच सौ साथियोंके साथ जिनदीक्षा ली और यहाँ घोर तपश्चरण कर विपुलाचलसे निर्वाण पद पाया ।२ उपसंहार
राजगिरि प्राचीन जैन तीर्थ है । इस नगरीका सम्बन्ध भगवान् आदिनाथके समयसे रहा है । ऋषभदेव स्वामीका समवशरण भी यहाँपर आया था । बौद्ध साहित्य और वैदिक साहित्यमें भी इसका उल्लेख आया है। विनय पिटकमें बताया गया है कि गृह त्याग कर महात्मा बुद्ध राजगृह आये और सम्राट् श्रेणिकने उनका सत्कार किया। अपने मतका प्रचार करनेके लिए भी अनेक बार राजगृहमें बुद्धको आना पड़ा था। वह बहुधा गृद्धकूट पर्वत कलन्दक निवायवे उपवनमें विहार किया करते थे। जब बुद्ध जीवक कौमारमृत्यके आम्रवनमें थे, तब उन्होंने जीवकसे हिंसा अहिंसाको चर्चा की थी और जब वे उपवनमें थे तब उनका अभयकुमार से वाद हुआ था । साधु सफल दोयिने भी बुद्धसे वार्तालाप किया था।
राजगृह माहात्म्यमें बताया गया है कि सूतजीने श्रीशौनक आदि ऋषियोंसे राजगृहकी महत्तापर प्रकाश डालते हुए कहा था कि यह राजगृह क्षेत्र सम्पूर्ण तीर्थोंमें अत्युत्तम है। यहाँ सभी देव, तीर्थ और नदियाँ विचरण करती हैं। अयोध्या, मथुरा, माया, कांची, काशी, अवन्तिका आदि तीर्थोकी धारा सप्तऋषियोंके नामसे एकत्रित है। स्कन्द गया, राजगृह, बैकुण्ठ, लोह दण्डक, च्यवनाश्रम और पुनःपुनः ये छ: मगध के प्रधान तीर्थ हैं। इनमें सबसे अधिक फल देनेवाला पाताल जाह्नवीका जल प्रपात-ब्रह्मकुण्ड (राजगृहस्थ) है ।-सोनभण्डार, मनियार, गौतमवन, सीताकुण्ड, मतीकोल आदि स्थानका स्पष्टतः जैन संस्कृतिसे सम्बन्ध है । इन स्थानोंपर जैन मुनियोंने तपस्याएं की हैं। क्या अब पुनः राजगिरि अपने लुप्त गौरवको प्राप्त कर सकेगा?
१. उत्तर पुराण पर्व ७६ श्लो० ३८५-३८६ २. आराधना कथा कोश भाग १ पृ० १०५ ३. हरिवंश पुराण सर्ग ३ श्लोक ५६ ४. मज्झिम निकाय (सारनाथ १९३) ५. अभयकुमार सुत्तन्त मज्झिम, पृ० २३४