________________
जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति ___६३ दृष्टिसे ये निश्चयतः ८-९ सौ वर्ष प्राचीन हैं । मन्दिर में प्रवेश करने पर दाहिनी ओर प्राचीन पार्श्वनाथकी प्रतिमा है । इस प्रतिमामें धर्मचक्रके दोनों ओर दो सिंह अंकित किये गये हैं ।
ऊपर चार मन्दिर है- ( १ ) शोलापुर वालोंका ( २ ) श्री जगमग बीबीका मन्दिर ( ३ ) श्री बा० हरप्रसाद दासजी आरा वालोंका मन्दिर और ( ४ ) जम्बूप्रसाद जी सहारनपुर वालोंका मन्दिर । ये सभी मन्दिर आधुनिक हैं, प्रतिमाएं भी आधुनिक हैं । चम्पापुरी
चम्पापुरी क्षेत्रसे बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीने निर्वाण प्राप्त किया है । तिलोयपण्णत्तिमें बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण पंचमीके दिन अपराह्नकालमें अश्विनी नक्षत्रके रहते छः सौ एक मुनियोंसे युक्त वासुपूज्य स्वामीने निर्वाण प्राप्त किया। यद्यपि उत्तरपुराणमें बासुपूज्य स्वामीका निर्वाण स्थान मन्दारगिरि बताया गया है। कुछ इतिहासज्ञोंका यह कहना हैं कि प्राचीनकालमें चम्पानगरका अधिक विस्तार था, अतः यह मन्दारगिरि उस समय इसी महान् नगरीको सीमामें स्थित था । भगवान् वासुपूज्य इस चम्पानगरमें एक हजार वर्षतक रहे थे। श्वेताम्बर आगम ग्रन्थोंमें बताया गया है कि भगवान् महावीरने यहाँ तीन चातुर्मास व्यतीत किये थे। चम्पाके पास पूर्णभद्र चैत्य नामक प्रसिद्ध उद्यान था, जहाँ महावीर ठहरते थे । श्रेणिकके पुत्र अजातशत्रुने इसे मगधकी राजधानी बनाया था। वासुपूज्य स्वामीके चम्पामें ही अन्य चार कल्याणक भी हुए।
, चम्पापुर भागलपुरसे ४ मील और नाथनगर रेलवे स्टेशनसे मिला हुआ है । जिस स्थान पर वासुपूज्य स्वामीको निर्वाण हुआ माना जाता है, उसी स्थान पर एक विशाल मन्दिर और धर्मशाला है । मन्दिरमें पाँच वेदियाँ हैं-चार वेदियाँ चारों कोनोंमें और एक मध्यमें । मध्य वेदीमें प्रतिमाओंके आगे वासुपूज्य स्वामीके चरण काले पत्थर पर अंकित किये गये हैं। इन चरणोंके नीचे निम्न-लेख अंकित है।
- स्वस्ति श्री जय श्रीमङ्गल संवत् १६९३ शकः १५५९ मनुनामसम्बत्सरे (संवत्सरे) मार्गशिर (मार्गशीर्ष) शुक्ला २ शनी शुभमुहुत्तं श्रीमूलसंघ सरस्वतीगच्छबलात्कारगणे कुन्दकुन्दान्वये भट्टारक श्रीकुमुन्दचन्द्रस्तत्पट्टे भ० श्री धर्मचन्द्रोपदेशात् जयपुर शुभस्थानबघेरवाल ज्ञाति से० श्रीपासा भा० से० श्रीसुनोई तथा पुप्रसश्री ५ नामा० श्री सजाईमतं चम्पावासुपूज्यस्य शिखबद्ध शिखरबद्ध प्रासाद कारण्य प्रविष्ठा व"विद्याभूषणैः प्रतिष्ठितं द्धितां श्री जिनधम्यं ।। १. चम्पापुरे च वसुपूज्यसुतः सुधीमान् सिद्धि परामुपगतो गतरागबन्धः ।
... –निर्वाणभक्ति श्लो० २२ २. फग्गुणबहुले पंचमिअवरहे अस्सिणीसु चंपाए । एयाहियछसयजुदो सिद्धिगदो वासुपुज्जजिणो ।
.तिलोय पण्णत्ति अ० ४ गा० ११९६ ३. गुणभद्राचार्यका उत्तरपुराण पर्व ५८. , . . . ४. चंपाएं वासुपुज्जो वसपुज्जणरेसंरेण विजयाए ।
फरगुणसुद्धचउद्दसीए णक्खत्तै पुव्वभद्दपदे ॥-तिलोय पण्णत्ति अ० ४ गा० ५३७