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29. वराहमिहिर संहिता 19/61
30. मूलाचार - मूलगुण अधिकार गा. 30
31. सहस्त्राणि च चत्वारि नृपाणौ स्वामिभक्तितः
तदाकूतमजानन्ति प्रपिणान्नानि नग्नताम् । पद्मपुराण 3 / 286
जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
32. आदिपुराण 20/170
33. वेद पुराणादि ग्रन्थों में जैन धर्म का अस्तित्व, - ले. मक्खनलाल, दिल्ली - 1930. 34. The Bhagwata Purana endroses the view that Rishabha was the founder of Jainism - (Indian Philosophy 287 ).
35. ऋषभ अवतार कहे हैं कि ईश्वर अग्नीन्ध के पुत्र नाभि से सुदेवी पुत्र ऋषभदेव जी भये । समान दृष्टा जड की नाई योगाभ्यास करते भये, जिनके पारमहंस्य पद को ऋपियों ने नमस्कार कीनो, स्वस्थशान्त इन्द्रिय सब संघ त्यागे ऋषभदेव जी भये, जिनसे जैनमत प्रगट भयो ।
(भागवतपुराण 2-7-9-10 ज्वालाप्रसादभाष्य )
36. भुवनाम्भोजमार्तण्डं धर्मामृत पयोधरम् ।
योगिकल्पतरुं नौमि देवदेवं वृपध्वजम्।। ज्ञानार्णव- 1.2।।
37. भागवत स्कन्ध 5 अ. 5
38. जिनेन्द्रमत दर्पण, प्रथम भाग पृ. 10
39. अनेकान्त, वर्ष 1, पृ. 539
40. अनेकान्त, वर्ष 1, पृ. 539-540
41. यथाजातरूपधरां निर्ग्रन्थों निष्परिग्रहः जावालोपनिपद सू. 6
42. सन्यासः पटविधो भवति
कुटिचक - वहूदक - हंसः - परमहंसः - तूरियातीत अवधूतश्चेति - ( सन्यासोपनिषद 13 ) 43. अथभिक्षुगाम् मोक्षार्थीनाम् कुटीचक- बहुदक- हंस- परमहंस चत्वारः
44. ईशादिविंशोत्तरशतोपनिपदः पृ. 146
45. ईशादिविंशोत्तरशतोपनिषदः पृ. 166 46. ईशादिविंशोत्तरशतोपनिपदः पृ. 313-316 47. ईशाद्यः पृ. 415; सन्यासोपनिषद 59
48. ईशाद्यः पृ. 27
49. ईशाद्यः पृ. 21 पृ.368
50. ईशाद्यः .
51. ईशाद्यः पृ. 524
52.
i Ho. 111 472-485-Dr. N. N. Law (Calcutta) 53. भगवान पार्श्वनाथ प्रस्तावना-ले. कामताप्रसाद - पृ. 32-49 54. दिगम्बरत्व और दिगम्बरमुनि - ले. कामताप्रसाद पृ. 31 55. पुरातत्व, वर्ष-2, अंक 4, पृ. 440 56. देखें फोटो सं. 1