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________________ 55 भारतीय साहित्य में जैन श्रमण कविदण्डन् अपने दशकुमार चरित में दिगम्बर मुनि का उल्लेख "क्षपणक के नाम से करते हैं, जिससे उनके समय में नग्न मुनियों की सत्ता प्रमाणित है।100 . इसी प्रकार "प्रबोधचंद्रोदयनाटक" के अंक 3 में निम्नलिखित वाक्य दिगम्बर मुनि के बाहुल्य के बोधक हैं। "सहि पेक्ख पेक्ख एसो गलण्तमल पंक पिच्छिलवीहच्छदेहच्छवी उल्लुचि अचिउरो मुक्कवसणवेसदुद्सणो सिहिसिहिदपिच्छ आहत्थो इदोज्जेव पडिवहदि" अर्थात् हे सखि देख! देख! वह इस ओर आ रहा है। उसका शरीर भयंकर और मलाच्छन्न है। शिर के बाल लुंचित किये हुए हैं और वह नंगा है। उसके हाथ में मोर-पिच्छिका है और वह देखने में अमनोज्ञ है। इस पर सखी ने कहा - "आं ज्ञातंमया, महामोहप्रवर्तितोऽयं दिगम्बरसिद्धान्तः" (ततः प्रविशति यथा निर्दिष्टः क्षपणकवेशो दिगम्बरसिद्धान्तः") संस्कृत साहित्य के उपर्युक्त उल्लेखों के आधार पर जैन श्रमणों की साहित्यिक क्षेत्र में भी सत्ता का बोध होता है। 2. तमिल साहित्य में श्रमण तमिल साहित्य के मुख्य और प्राचीन लेखक दि. जैन विद्वान रहे हैं। तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ "तोल्काप्पियम्" एक जैनाचार्य की ही रचना है,तमिल साहित्य के प्राचीनतम काल को "संगम काल" कहते हैं यह ई. पूर्व द्वितीय शताब्दी से ईस्वी पांचवी शताब्दी तक का है। इस काल के साहित्य में बौद्धों द्वारा रचित "मणिमेखलै" प्रसिद्ध काव्य है। इसमें दिगम्बर श्रमणों और उनके सिद्धान्तों का विशद वर्णन है। इसमें निर्ग्रन्थ संप्रदाय को "अरहन्" (अर्हत) का अनुयायी लिखा है, जो जैन होते हैं। इस काव्य के पात्रों में सेठ कोवलन् की पत्नी कणिक के पिता मानाइकन के विषय में लिखा है कि "जब उसने अपने दामाद के मारे जाने के समाचार सुने तो उसे अत्यन्त दुख हुआ और वह जैन संघ में नंगा हो गया।101 इस काव्य से यह भी प्रगट होता है कि चोल और पाण्ड्य राजाओं ने जैन धर्म को अपनाया था।102 शैव और वैष्णव सम्प्रदायों के तमिल साहित्य में भी दिगम्बर मुनियों का वर्णन है। शैवों के परिय पुण्णम्" नामक ग्रन्थ में मूर्ति नायनार के वर्णन में लिखा है कि कलभ्र वंश के क्षत्रीयजैसे ही दक्षिण भारत में पहुँचे वैसे ही उन्होंने दिगम्बर धर्म को अपना लिया। उस
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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