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________________ जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा उपर्युक्त तथ्यों के एक विहंगावलोकन से यह स्पष्टतः प्रतीत होता है कि भारत का प्राचीनतम पुरातत्व जैन श्रमणों से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में प्रभावित एवं समर्थक रहा है। 48 (2) अशोक के शासन लेख में जैन श्रमण : सिन्धु देश के पुरातत्व के पश्चात् सम्राट अशोक द्वारा निर्मित पुरातत्व ही सर्व प्राचीन है । वह पुरातत्व भी जैन श्रमणों के अस्तित्व का द्योतक है। सम्राट अशोक ने अपने एक शासन लेख में आजीवक साधुओं के साथ निर्ग्रन्थ साधुओं का भी उल्लेख किया है। 71 अशोक के पश्चात् खण्डगिरि - उदयगिरि का पुरातत्व जैन श्रमण की प्रसिद्धि का पोषक है। जैन सम्राट खारवेल के हाथी गुफा वाले शिलालेख में दिगम्बर श्रमणों का तापसरूप का उल्लेख है। 72 उन्होंने सारे भारत के दिगम्बर श्रमणों का सम्मेलन किया था । खारवेल की पटरानी ने भी दिगम्बर मुनियों-कलिंग श्रमणों के लिए गुफा निर्मित कराकर उनका उल्लेख अपने शिलालेख में निम्न प्रकार किया है । "अरहन्तपसादायम् कलिंगानम् समनानं लेनं कारितम् राज्ञो लालक सहथीसाहसपपोतस् धुतुना कलिंग चक्रवर्तिनो श्री खारवेलस अगमहिलिना कारितम् । " भावार्थ - अर्हन्त के प्रासाद या मन्दिर रुप यह गुफा कलिंग देश के श्रमणों के लिए कलिंग चक्रवर्ती राजा खारवेल की प्रमुख पटरानी ने निर्मित करायी, जो हथीसाहस के पौत्र लालकस की पुत्री थी। 73 खण्डगिरि - उदयगिरि के उपर्युक्त शिलालेखों से ई. पू. दूसरी शताब्दी में दिगम्बर श्रमणों के कल्याणकारी अस्तित्व का पता चलता है। मथुरा का पुरातत्व ई. पू. प्रथम शताब्दी का है और उससे पूर्व भी श्रमणों का जनता में बहुमान होना प्रसिद्ध है । वहाँ की प्रायः सब ही प्राचीन प्रतिमायें नग्न दिगम्बर हैं । एक स्तूप के चित्र में जैन श्रमण नग्न, पिच्छि व कमण्डलु लिये दिखाये गये हैं।74 जैसे " नमो अर्हतो वर्धमानस आराये गणिकायं लोण शोभिकायें धितुसमण साविकाये नादाये गणिको वसु (ये) आर्हतो देविकुल आय सभा प्रयाशिल (T) पटो पतिष्ठापितोनिगन्थानम् अर्हता यतने सहामातरे भगिनिये धितरे पुत्रेण सर्वेन च परिजनेन अर्हत् पुजाये ।" अर्थात् - अर्हत् भगवान को नमस्कार । श्रमणों के लिए श्राविका आरायगणिका लोणशोभिका की पुत्री नादाय गणिका वसु ने अपनी माता, पुत्री, पुत्र और अपने सर्व कुटुम्ब सहित अर्हत् का एक मन्दिर एक आयाग सभा, ताल और एक शिला निर्ग्रन्थ अर्हतों के पवित्र स्थान पर बनवाये। 75
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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