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________________ 288 जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा छेदोपस्थापना है, अथवा सावद्यकर्म रूप हिंसादि के भेद से पाँच प्रकार का होना छेदोपस्थापना है।21 जैसे सर्व सावद्य त्याग लक्षण वाले सामायिक की अपेक्षा से व्रत एक है, और वही छेदोपस्थापना की अपेक्षा से पाँच प्रकार का होता है।22 अथवा "व्रत, समिति और गुप्ति रूप तेरह प्रकार के चारित्र में भेद वा दोष लगने पर उन दोषों को छेद करना नाश करना और फिर अपनी आत्मा में स्थापन करना, अपने आत्मस्वरूपचारित्र को अपने आत्मा में ही स्थिर रखना वह छेदोपस्थापना चारित्र है।23 यह चरित्र भी छठवें गुणस्थान से नवमें गुणस्थान तक पाया जाता है, और आठवें से श्रेणी में ध्यानमग्न अवस्था होने से वहाँ पर छेद/दोपों के प्रायश्चित्त रूप नहीं है। 3. परिहार विशुद्धि चारित्र - जो जीव जन्म से 30 वर्ष तक सुखी रहकर फिर दीक्षा ग्रहण करके और तीर्थंकर के पादमूल में आठ वर्ष तक प्रत्याख्यान नामक नवमें पूर्व का अध्ययन करे, उसके यह संयम होता है। जो जीवों की उत्पत्ति-मरण के स्थान, काल की मर्यादा, जन्म-योनि के भेद, द्रव्य-क्षेत्र का स्वभाव, विधान तथा विधि इन सभी को जानने वाला हो, और प्रमाद रहित महावीर्यवान हो, उसके शुद्धता के बल से कर्म की बहुत निर्जरा होती है। अत्यन्त कठिन आचरण करने वाले मुनियों के यह संयम होता है। जिनके यह संयम होता है उनके शरीर से जीवों की विराधना नहीं होती। यह चारित्र छठवें गुणस्थान से सातवें गुणस्थान में होता है। इस संयम वाला जीव तीन संध्यावालों को छोड़कर प्रतिदिन दो कोश पर्यन्त गमन करता है, रात्रि को गमन नहीं करता। और इसके वर्षाकाल में गमन करने का या न करने का कोई नियम नहीं है।24 4. सूक्ष्म सांपराय चारित्र - जब अति सूक्ष्म लोभकपाय का उदय हो तब जो चारित्र होता है वह सूक्ष्म सांपराय है। यह चारित्र दसवें गुणस्थान में होता है। 5. यथाख्यात चारित्र - सम्पूर्ण चारित्रमोहनीय के सर्वथा क्षय अथवा उपशम हो जाने से आत्मा के शुद्ध स्वरूप में स्थिर रहना वह यथाख्यात चारित्र है। यह चारित्र ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक होता है। शुद्धभाव ही चारित्र है और उसी से संवर-निर्जरा होती है, अतः इस अपेक्षा से संवर-निर्जरा के भेद से भी मुनियों में भेद स्वतः सिद्ध हो गया।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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