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जैन-श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
284. अपरे पुनद्रव्यजिनलिंग धारिणो मठपतयो म्लेच्छन्ति म्लेच्छा इवाचरन्ति।
लोकशास्त्र विरुद्धमाचारं चरन्तीत्यर्थः. --------- जै.सा. इति.पृ. 488. 285. जैन निबंध रत्नावली, पृ. 405 286. त.स.अ.9 सू. 47. 287. "क्या चाहते है ये भेषधारी मुनि" - ले.पं. सत्यन्धर कुमार सेठी, (इसमें
सुधर्मसागर ने ले. को मारने के लिए अनशन पर बैठे और कहा कि जाओ मारो, पीटो ---- लाश मेरे सामने लाओ करो तैयारी जुलूस की" ) समन्वय वाणी, मई
(प्रथम) 1987. 288. परिपत्रक क्रमांक 21, ता. 1-10-88. 289. पंडितै भ्रष्टचारित्रैर्वठरैश्च तपोधनः ।
शासनं जिनचन्द्रयस्य निर्मलं मलिनीकृतम् ।। अन.ध.पृ. 182 परउद्धृत। 230. जैन सन्देश, 2 दिसम्बर सन् 1982, सम्पादकीय (पं. कैलाशचन्द्र जी
सिद्धान्तशास्त्री) 291. जैन सन्देश 5 मार्च, 1981, प्रकाशित समाचार के आधार पर। 292. "श्रमणजैन" 1956 पृ. 34 293. जैन साधु सम्मेलन का इतिहास ले. दुर्लभजी जौहरी, पृ. 38-39. 291. वही, प्रारम्भिक प्रस्तावना। 295. मनु टाइम्स, मार्च द्वितीय आदि अंकों से 1987. 296. जैन सन्देश 14 जौ. 1983 - सम्पादकीय - पं. कैलाशचन्द्र जी। 297. वीरवाणी अगस्त, 1959, सम्पादकीय। 298. धर्म के दशलक्षण पृ. 244-45, ले.डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल। 299. जैन सन्देश अंक 21-28 दिसम्बर 89, पृष्ठ 1. 300. बाला वयंति एवं वैसो तित्थकराण एसोवि।
णमणिज्जयो धिद्रि अहो सिरशूलं कस्स पुक्करिगो।। 76 ।। संबोध प्रकरण।। 301. मोक्ष पाहुड गा. 78-79. 302. मोक्षमार्ग प्रकाशक पृ. 184-187 का सारांश 303. मोक्षमार्ग प्रकाशक पृ. 179. 304. भ. आ. 290-293, र.सा. 106-114. 305. भा.पा. 155. 306. र.क. श्रा. 33. 307. मूलाचार गा. 595. 308. मूलाचार गा. 494-96, भ.आ. 1289 से 1306, चा.ध.प्र.प. 200-1. 309. चा.ध.प्र.पू. 201.. . 310. चर्चा संग्रह (ह.लि. ) पृ. 154 311. भारतीय जन का इतिहास पृ. 413 - सम्पादक डॉ. रमेश चन्द्र मजूमदार एवं डॉ.
अनन्त प्रकाश सदाशित अल्तेकर।