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जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा
घ. 1/1.1, 176/409/10; नि.सा./ता.वृ. 63 में उद्धृत; प्र.सा. ता.व. 20 में उद्धृत प्रक्षेपक गा.सं. 2, स.सा./ता.व. 405 मू.आ. 676; रा.वा.
7/21/8/548/8; अन.घ. 7/13/667, ला.सं. 2/16-17 116. निर्ग्रन्थ गुरु की महिमा - समन्वयवाणी सितम्बर प्रथम सन्, 86 ( चर्चावर्णन से
उद्धृत) 117. विहितविधिना देह स्थित्यै तपाहयुपवंहय,
न्नशनमपरैर्भक्त्या दत्तं स्वचिकियदिच्छति। तदपि नितरां लज्जाहेतुः किलास्य महात्मनः,
कथमयमहो गृण्हात्यनयान् परिग्रहदुर्ग्रहान्।। 158 ।। आत्मानुशासन 118. मूलाचार 6/62 119. जतासाधणमेतं - वही 6/64, भुजति मुणी पाणधारणणिमितं-वही 9/49 120. वही 9/48 121. तत्वार्थ वार्तिक 9/5/6 122. उत्तराध्ययन 8/11 123. भगवती सूत्र 1/9 सूत्र 438, अंगसुत्राणि भाग2,पृ. 73 124. ज्ञाताधर्म कथा अ. 2 तथा 8 125. रयणसार 107 126. मूलाचार 6/60; उत्तरा 26. 33, 6.14, 8.10-12,12-35 127. वही 6/61, उत्तरा. 19.76-77, 15.8 128. मूलाचार 6/59 129. मूलाचार वृत्ति 6/61 130. वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए
तह पाणवतियाए छठें तुण धर्माचिन्ताए।। स्थाना. 6/41, उत्तरा. 26/33 आयं के उपसग्गे तितिक्खया बम्भचेरगुतीसु। पाणिदया तवहेउं सरीर - वोच्छेयण्ट्ठाए।। स्थाना. 6/42, उत्तरा. 26/35
रयणसार गा. 108; चारिजसार 78 तत्वार्थवार्तिक 9/6/16 132. अन.घ. 6/49 133. निर्ग्रन्थ गुरु की महिमा - समन्वय वाणी नवम्बर प्रथम-86 134. मूलाचार 9/49 135. जह सगडक्खो वंगो कोरई भरवहण कारणा णवरं।
तह गुणभार वहणत्थं, आहारो बंभयारीणं । उत्तराध्ययन वृहद्वृति 8/11,पत्र 294, 136. तत्वार्थवार्तिक 9/6/16 137. दशवैकालिक 5/1/1 की जिनदास कृतचूर्णि पृ. 167-168 138. दशवैकालिक हरिभद्रीय टीका पत्र 18 139. दशवैकालिक की अगस्त्यसिंह चूर्णि पृ. 99