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________________ सदोप श्रमण 257 श्रमण हैं। वस्तुतः इन लोगों ने जो प्रस्ताव पास किये थे वे पूर्व में मूलाचार आदि ग्रन्थों में विद्यमान थे, अतः अलग से उनके प्रस्ताव पास कर मनमाने का औचित्य एक राजनीति के अलावा और क्या हो सकता है। क्योंकि "जो लोग (स्वयं) आगम का बन्धन स्वीकार नहीं करते वे समाज का बन्धन कैसे स्वीकार कर सकते हैं। 290 श्रमणाचार के सम्बन्ध में श्रमण परिषद का श्रवणवेलगोला में आयोजित आयोजन का विवरण प्रस्तुत है। मुनि विद्यानन्द के प्रयास से श्रमण परिपद की ऐतिहासिक बैठक हुयी। इसमें आचार्य देशभूषण, आचार्य विमलसागर, क्षुल्लक, क्षुल्लिका, सम्मिलित हुए और त्यागी जनों के लिए सर्व सहमति से एक त्यागी आचार संहिता प्रस्तावित की। इस प्रस्तावित त्यागी आचार संहिता को चामुण्डराय मण्डप में समस्त श्रमण-श्रावक-श्राविका चतुःविध संघ के समक्ष रखा गया और यह प्रस्ताव पारित हुआ। साथ ही इस पारित प्रस्ताव को नीरज जैन ( सतना) के साथ उत्तर भारत स्थित अन्य आचार्यों एवं आर्यिकाओं की सहमति प्राप्त करने के लिए भेजा गया। इस अवसर पर आचार्य सुबाहुसागर, सुबल सागर, मुनि विद्यानन्द, आचार्य देशभूषण, विमलसागर, आर्यिका विजयमती, ने इस प्रस्ताव की अनुशंसा करते हुए अपने विचार व्यक्त किये और आर्शीवाद प्रदान किया। एलाचार्य विद्यानन्द ने कहा कि, गुरु के समीप रहने से उनकी सत्संगति से ही जीव का उद्धार हो सकता है। आर्यिका विजयमती ने कहा कि यह प्रस्ताव त्यागी वर्ग की स्वच्छन्दता को रोकने के लिए है। हमें अनुशासन में रहना चाहिए। पारित प्रस्ताव : भगवान गोम्मटेश्वर-मूर्ति के प्रतिष्ठापना सहस्राब्दि एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव के पुण्यावसर पर समायोजित दि. जैन परिषद् द्वारा निम्न प्रस्ताव पारित किये जाते हैं। 1. यह दि. मुनि परिषद प्रस्ताव करती है कि कम से कम दो मुनि, दो आर्यिकाएँ दो क्षुल्लिकाएँ अथवा दो क्षुल्लक या दो समलिंगी पिच्छिधारी अपने दीक्षागुरु आचार्य से आज्ञा लेकर ही विहार कर सकते हैं। अकेले मुनि, आर्यिका, ऐलक-क्षुल्लक आर्यिका विहार नहीं कर सकते। 2. दि. मुनि परिषद् प्रस्ताव करती है कि दीक्षा लेने से पूर्व दीक्षार्थी को निम्नलिखित प्रतिज्ञा पत्र पढ़ना और उसका पालन आवश्यक है। दीक्षा गुरु आचार्य भी दीक्षा देते समय इस प्रतिज्ञा पत्र को नव दीक्षित से पढ़वा कर उसे प्रतिज्ञाबद्ध करें।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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