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________________ मूलगुण इस प्रकार दिगम्बर - श्वेताम्बर के विभिन्न ग्रन्थों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि इस अदत्तादान महाव्रत के स्वरूप एवं उसकी भावनाओं में कुछ साम्प्रदायिक तथ्यों को छोड़कर अधिकांशतः समानता ही है। 105 इस तरह इस व्रत के निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि चूंकि चोर के न दया होती है और न लज्जा न उसकी इन्द्रियाँ वशीभूत होती है और न विश्वसनीयता । अतः अचौर्य महाव्रती श्रमण को इन सभी दुर्गुणों से विमुक्त कहकर 33 निश्चयरूप से परमपद की प्राप्ति बतलाते हुए आशाधर जी कहते हैं कि - "यह समस्त जगत शुद्ध चिन्मात्र अर्थात् समस्त विकल्पों से अतीत अविचल चैतन्य के साक्षात्कार में उपयोग लगाने से विमुख हो रहा है। इस अपकार के अहंकार से गर्वित होकर लोभ अपनी भुजाएं ठोंक कर अट्ठहास. करता है। ऐसे तीनों लोकों को जीतने वाले उस लोभ को भी जीतकर जो पराये धन को विष्टा के तुल्य और महापाप रूपी विष का स्रोत मानते हैं, और अपनी महत्ता से आकाश के मद को छिन्न-भिन्न करके लक्ष्मी को अपनी दासी बना लेते हैं । वे सन्तोष रूपी रसायन के व्यसनी साधु सदा जीवित रहें अर्थात् दया, इन्द्रिय संयम और त्यागरूप भाव प्राणों को धारण करें 134 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत : ज्ञानदर्शन रूप से जो वृद्धि को प्राप्त हो वह ब्रह्म कहलाता है। यहाँ जीव को ब्रह्म कहा गया है। अपने और पर के देह से आसक्ति छोडकर शुद्ध ज्ञान- दर्शनादिक स्वभाव रूप आत्मा में जो प्रवृत्ति करता है वह ब्रह्मचर्यव्रती है । वह दश प्रकार के अब्रह्म का त्याग करता है - स्त्री विषयाभिलाषा, वीर्य विमोचन, संसक्त द्रव्य सेवन, इन्द्रियावलोकन, स्त्री सत्कार, स्व शरीर संस्कार, अतीत भोगों का स्मरण, अनागत भोगों की कामना और इष्ट विषय सेवन 135 ब्रह्मचर्य महाव्रती श्रमण इन दस प्रकार के अब्रह्म का त्याग करते हुए "तीन प्रकार की स्त्रियों को और उनके चित्र को माता- पिता, पुत्री और बहिन के समान देखकर जो स्त्रीकथा आदि से निवृत्ति है वह तीन लोक में पूज्य ब्रह्मचर्य व्रत कहलाता है। 36 आचार्य वसुनन्दि ने कहा कि- "वृद्धा, बाला, युवती के भेद से तीन प्रकार की स्त्रियों को माता, पुत्री और बहिन के समान सम्यक् प्रकार से समझकर तथा चित्र लेप आदि भेदों में बने स्त्रियों के प्रतिबिम्ब को एवं देव मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी स्त्रियों के रूप देखकर उनसे विरक्त होना, स्त्रियों के कोमल वचन, उनका मृदुस्पर्श, उनके रूप का अवलोकन, उनके नृत्य गीत, हास्य कटाक्ष, निरीक्षण आदि में अनुराग का त्याग करना, स्त्री कथादि निवृत्ति का अर्थ है|37 स्त्री पर्याय तीनों गतियों में पायी जाती है। अतः स्त्री के मूल रूप से 3 भेद किये गये हैं। देवों में यद्यपि बाल, वृद्ध और युवती का भेद नहीं होता, तथापि विक्रिया से यह भेद सम्भव हो सकता है। इन तीनों प्रकार की स्त्रियों के बाल, वृद्ध और यौवन की अपेक्षा
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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