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________________ करेंगे तो हमारे मन में किसीको मारने, सताने के भाव पैदा नहीं होगे। हम निरर्थक पशुपक्षी वनस्पति का हनन या नुकसान नहीं करेंगे । इससे हमारे मन में दूसरों के प्रति सद्भाव और करुणा का जन्म होगा । हम जानते हैं कि आज का आदमी अपने स्वार्थ से इन मानवीय गुणों को भूलता जा रहा है । इसलिए जीवन की कला हम सीखें ऐसा ज्ञान दिया जाना चाहिए । मैं ऐसी शिक्षा की हिमायत चाहता हूँ जिसमें आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ दूसरों के सुख का भी ध्यान रखा जाय । यह भावना ही हमारे विकास का मूल कारण है । जब हम अहिंसा के प्रति समर्पित होंगे, हमारी आवश्यकताओं में परिमाण होगा, और हमारे विचारों में अहंभाव नहीं होगा, तभी हम जीवन जीने की कला का विकास कर सकेंगे। (५) हमारी धार्मिक शिक्षा ऐसी हो जिसमें समग्र समाज, राष्ट्र और विश्व की शांति की भावनायें निहित हों । हम जानते हैं कि आज समाज टूट रहा है । संयुक्त कुटुंब की भावनायें टूट रही हैं । स्वार्थ ने अपना अंधकार फै लाया है । आज व्यक्ति व्यक्ति के खून का प्यासा है । आज देश और विश्व धर्म, भाषा, प्रदेश और देश इन सबकी संकुचित सीमाओं में बंट गया है । स्वार्थ ने व्यक्तिओं ही नहीं राष्ट्र को भी अंधा बना दिया है । पूरा विश्व बारुद के ढेर पर बैठा है । कब विस्फोट हो और पूरी दुनिया नष्ट हो जाये इसका सभी को भय है। आज विश्वास खत्म हो गया है। अधिनायक वाद परोक्ष रूप से शिर उठा रहा है। विश्वशांति की बातें करनेवाले उसका सबसे अधिक भंग कर रहे हैं । ऐसे समय हम सहअस्तित्व और अनेकांतवाद के द्वारा विश्व को यह समझा सकते हैं कि हम परस्पर बैठकर समस्याओ का समाधान ढूंढें । हमारा बालक और युवक वर्तमान शिक्षा के साथ तालमेल बैठाता हुआ अपने चरित्र में दृढ़ रहे, अपने जैनत्व को अक्षण्ण रख सके यही हमारी भावना है । हम ऐसा पाठ्यक्रम बनायें जो पुराण पंथी या रूढ़िवादी न हो अपितु इनको तोड़कर वह जन-जन के विकास के लिए उपयोगी हो । हमारा बालक जिसे कल युवा होना है। जिसके कंधे पर संस्कृति का बोझ आ रहा है, उसे हमें इतना मजबूत करना है कि वह आकाश में कितना भी ऊँचा उठे पर उसके पाँव धरती से नहीं उठना चाहिए । यही शिक्षा का उद्देश्य भी होना चाहिए । ज्ञानधारा-3 १५० मन साहित्य SIHAR-3
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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