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________________ करना होगा । हरेक क्षण हम अपनी दिशा चुनते हैं और कर्मसिद्धांत उसीके मुताबिक न्याय देता है । कई बार सच और झूठ के बीच में चुनाव मुश्किल होता है लेकिन जब दो सच के बीच में चुनाव करना हो तो और भी मुश्किल है। कर्म-सिद्धांत कहता है कि - "जगत् में कोई भी ऋण बिना चुकाये नहीं बनता।" कर्म जगत की एक पूर्ण हिसाब (Accounting system) व्यवस्था है और सब चीजें हमेशा शक्ति के स्त्रोत इधर से उधर बहने में दृश्य होती है । 'लाइट आफ एशिया' पुस्तक में कर्म-सिद्धांत की भव्यता बताई है : • जैसा बोओ वैसा पाओ, देखिए आपके खेल • तिल से तिल और मका से मका • यह शांति और अंधकार को पता • कि मनुष्य का भावि वैसे ही जन्म लेता । कर्म-सिद्धांत एक नियम है जो सभी प्राकृतिक नियमों को, गुरु त्वाकर्षण से लेकर समांतर मध्यांक तक के नियमों को अपने वर्चस्व में रखता है । लेकिन वह कोई अंधनियम नहीं है । विश्व के अन्य नियमों की भांति वह एक जीवंत और बुद्धिवान नियम है । जैसे दनिया में कोई मृत या अंध पदार्थ नहीं है, अंध या सुषुप्त नियम नहीं है । वैसे ही जगत को अंदर से ही मार्गदर्शन मिलता है। वैश्विक व्यवस्था : परा विश्व एक संगठित तंत्र (Integrated system) है । एक शरीर की भांति विश्व भी समग्र है । यदि अंगुली में कील लग जाये तो पूरे शरीर में दर्द होता है, उसी तरह जगत के सब तत्त्व एक दूसरे से संगठित है । हालांकि हम उससे अनभिज्ञ है, अदृश्य आंतर शृंखला बनी ही है । कर्म-सिद्धांत समझने के लिए विश्व को भी एक समग्र दृष्टि से देखना होगा, क्योंकि विश्व (Cosmos) व्यवस्था है, (Chaos) अव्यवस्था नहीं । शरीर की तरह विश्व भी अंग-उपांगों से बनी हई जटिल व्यवस्था है जिसमें धमनी, नसें, कोष वगैरह समाविष्ट है और हरेक कोष का अपना व्यक्तिगत व्यवहार भी है, जो उच्च केन्द्र के काबू में है । ज्ञानधारा-3 म म ११२ मन साहित्य SITERI-3) . ज्ञानसत्र-3 T
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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