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________________ LIVERY कर्म-सिद्धांत के अनुसार वैश्विक व्यवस्था एम.ए., पीएच.डी. सोमैया कोलेज डॉ. गीता मेहता घाटकोपरमें जैन अध्ययन विभाग के उपरी है। भौतिक दृष्टि से कर्म-सिद्धांत एक कारण ही है, यह सभी वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में विदित हो चुका है कि क्रिया और प्रतिक्रिया दोनों समसमान होती है । आध्यात्मिक दृष्टि से कर्म एक नैतिक प्रतिक्रिया का नियम है, जिससे न सिर्फ प्रत्येक कर्म का विपाक होता है बल्कि जो कारण को कर्म रूपांतरित करता है, वह उससे प्रभावित भी होता है । ___डॉ. राधाकृष्णन् इसे 'नैतिक शक्ति के संग्रह का नियम (Law of Conservation of Moral Energy)' कहते है । 'कारण' भूतकाल की अवस्था में से उत्पन्न होता है । इसके कारण जादू की कल्पना और ईश्वर-इच्छा पर छोड़ देने की मानसिक वृत्ति कम हो जाती है । कर्म-सिद्धांत : विश्व के कारण कार्य-सिद्धांत में कर्म-सिद्धांत निहित है । विश्व में सभी कार्यों के कारण होते है कारण के बिना कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता । उसी तरह जो भी कर्म हम करते हैं उसका परिणाम होता ही है । कर्म का परिणाम व्यक्तिगत, सामाजिक या वैश्विक असर भी छोड़ता है । कर्म-सिद्धांत एक साथ कारण भी है और परिणाम भी है, क्योंकि प्रत्येक कर्म से एक प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती होती है, जो उसी प्रकार हमारी ओर आती है। यदि हमें हमारे जीवन में सुख चाहिए तो हमें सुख के ही बीज बोना सीखना चाहिए। हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में हमारे सामने चुनने का मौका आता है । कर्म-सिद्धांत को ठीक से समझने के लिए और ज्यादा से ज्यादा उसका उपयोग करने के लिए हमें जागरूकता से चुनाव जानधारा-3 मम्म १११ मन साहित्य SITEN-3)
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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