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१२. रत्नत्रय सूत्र
११९. धम्मादीसद्दहणं, सम्मत्तं णाणमंगपुव्वगदं ।
चिट्ठा तवंसि चरिया, ववहारो मोक्खमग्गो त्ति ॥१॥
धर्म आदि का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । अंगों और पूर्वो अर्थात् धर्मशास्त्रों का ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । तप में प्रयत्नशीलता सम्यक्चारित्र है । यह व्यवहार मोक्षमार्ग है ।
( १२. रत्नत्रय सूत्र) ૧૧૯. ધર્મ વગેરેમાં શ્રદ્ધા રાખવી સમ્યગ્દર્શન છે. અંગો તથા પૂર્વે
અર્થાત્ ધર્મશાસ્ત્રોનું જ્ઞાન સખ્યાત છે. તપમાં પ્રયત્ન (પ્રવૃત્તિ) સમ્યક્રચારિત્ર છે. આ વ્યવહાર મોક્ષમાર્ગ છે.
( 12. RATNATRAYA SOOTRA ) 119. Right perception is Realistiic faith in spirituality
etc. Right knowledge is deep faith/ understanding agamic (cannonic) scriptures and rightful efforts (activities) an Penance is known as rightful character. It is considered as liberation path in practical way.
१२०. नाणेण जाणई भावे, दंसणेण य सद्दहे ।
चरित्तेण निगिण्हा, तिवेण परिसुज्इई ॥२॥
मनुष्य ज्ञान से जीवादि पदार्थों को जानता है, दर्शन से उनका श्रद्धान करता है, चारित्र से कर्मास्त्रव का निरोध करता है
और तप से विशुद्ध होता है । (GLORY OF DETACHMENT DOOOOOOOOOOOG७)