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३१. पंडित सूत्र
३५८. जे य कं ते पिए मोए लब्धे विप्पिट्टि कुव्वई । साहीणे चयई भोए से हु चाइ त्ति वुच्चई ।।
(दशवैकालिक अ. २, गा. ३) रसयुक्त एवं प्रिय भोग उपलब्ध होने पर भी उनकी ओर से जो पीठ फेर लेता है और स्वाधिनता के साथ भोगों का त्याग करता है, वही त्यागी कहा जाता है ।
(दशवैकालिंक अ.२,गा.३)
(3१. पंडित सूत्र) ૩૫૮. સરસ અને પ્રિય ભોગો ઉપલબ્ધ હોવા છતાં તેના તરફથી
જે પીઠ ફેરવી લે છે અને સ્વાધીનતાપૂર્વક ભોગોનો ત્યાગ કરે છે તે જ ત્યાગી કહેવાય છે.
( 31. PANDIT SOOTRA) 358. Inspite of availability of Juicy (tasteful) and
favourite consumption items, one who turns his back from them (i.e. who avoids their consumption) and voluntarily discards them, is said to be Tyagi in real sense.
(Dashvaikalik - Chapter 2 Verse 3)
३५९. जहा कुम्मे सअंगाई सए देहे समाहरे । .. एवं पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहरे ॥
(सूत्रकृतांग १-८-१६) जिस तरह कछुआ अपने अंग को शरीर में सिकोड लेता है, उसी तरह ज्ञानीपुरुष अध्यात्म के जरिये अपने पापों को सिकोड
(सूत्रकृतांग १-८-१६) C00 SSSSSSSSSSSSSSSSSSC alcrun )
लेते हैं ।