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316. In this eighth Gunasthanak at different time
there are souls who accept & enjoy unprecedented experience (spiritual) and therefore it is called 'Apurva Karan' (unpercedented) Gunasthanak.
३१७. तारिसपरिणामट्ठियजीवा, हु जिणेहिं गलियतिमिरेहिं ।
मोहस्सऽपुव्वकरणा, खवणुवसमणुज्जया भाणया ।।१२।। अज्ञान-अंधकार को दूर करने वाले ज्ञानसूर्य जिनेन्द्रदेव ने उन अपूर्व-परिणामी जीवों को मोहनीय कर्म का क्षय या उपशम करने में तत्पर कहा है । (मोहनीय कर्म का क्षय या उपशम तो नौवें और दसवें गण-स्थानों में होता है, किन्तु उसकी
तैयारी इस अष्टम गुणस्थान में ही शुरू हो जाती है ।) ૩૧૭. અજ્ઞાનરૂપી અંધકારને દૂર કરનાર જ્ઞાનસૂર્ય જિતેન્દ્રદેવે એ
અપૂર્વ-પરિણામી જીવોને મોહનીય કર્મનો ક્ષય અથવા ઉપશમ કરવામાં તત્પર કહ્યા છે.
317. Lord Jineshwaras, who have removed dark
ness of ignorance and who are having sunlike brightened knowledge, have said, those holding that unprecedented reflections of souls, and who are keen to pacify or eliminate mohaniya karma are under this Gunasthanaka.
३१८. होति अणियट्टिणो ते, पडिसमयं जेसिमेक्कपरिणामा ।
विमलयरझाणहुयवह-सिहाहिं गिद्दड्डकम्मवणा ॥१३॥ वे जीव अनिवृत्तिकरण गुणस्थान वाले होते हैं, जिनके प्रतिसमय/निरन्तर एक ही परिणाम होता है । (इनके भाव अष्टम गुणस्थान वालों की तरह विसदृश नहीं होते ।) ये जीव निर्मलतर ध्यानरूपी अग्नि-शिखाओं से कर्म-वन को भस्म
कर देते हैं । GLORY OF DETACHMENT S
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